गृहस्थाश्रम में रहकर गृह कार्यों की बहुलता के कारण तथा बच्चों की सेवा उत्तरदायित्वों में व्यस्त रहने के कारण यदि सत्संग और संतों के पास जाने का समय बहुत कम ही मिल पाये फिर भी प्रयत्न करके सत्संग में अवश्य जाना चाहिए
क्योंकि तन (शरीर) का आहार घर में बनता है, प्राप्त होता है, किन्तु मन का आहार सत्संग में मिलता है अर्थात शरीर का आहार घर में और शरीरी (जीवात्मा) का आहार सत्संग में मिलता है। दोनों को ही यथोचित आहार देना अनिवार्य है।
जैसे घोड़ा और सवार भिन्न-भिन्न हैं, इसलिए उन्हें आहार भी भिन्न-भिन्न देना पड़ता है और देना भी चाहिए। इसी प्रकार शरीर और शरीरी भिन्न-भिन्न हैं, उनको भी आहार भिन्न-भिन्न देना चाहिए।
यदि इतना समय आपके पास नहीं है तो इसका सरल सा उपाय है कि आप सतशास्त्रों का स्वाध्याय करें। वह भी सत्संग ही है। इतना समय तो निकाल ही लेना चाहिए अन्यथा शरीरी की ज्ञान की क्षुधा शांत नहीं होगी और मन पाप का भागी हो जायेगा।