Sunday, January 5, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने दल्लेवाल चिकित्सा मामले में पंजाब से कहा, ‘आपका रवैया बिल्कुल भी सुलह-समझौते के पक्ष में नहीं है’

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक महीने से अधिक समय से राज्य की सीमा पर अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल को अस्पताल ले जाकर चिकित्सा सहायता देने के लिए कई बार मोहलत दिये जाने के बावजूद अपने आदेश पर अमल नहीं होने से पंजाब सरकार के प्रति गुरुवार को सख्त नाराजगी जताई और कहा कि ‘राज्य सरकार का रवैया सुलह-समझौते के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं है।’

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न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने यह धारणा बनाई है कि अदालत किसान नेता दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता देने का आदेश देकर उनका अनशन तोड़ने की कोशिश कर रही है। पीठ ने इन टिप्पणियों के साथ यह भी स्पष्ट किया कि अस्पताल में भर्ती होने का मतलब यह नहीं है कि सम्मानित नेता दल्लेवाल अपना शांतिपूर्ण विरोध समाप्त कर देंगे।

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पीठ के समक्ष पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने सफाई दी कि राज्य सरकार कोई पक्षपातपूर्ण रुख नहीं अपना रही है। उन्होंने कहा, “मौके पर मौजूद हमारे लोगों (राज्य सरकार के अधिकारी) ने उनसे (दल्लेवाल) अपनी भावना (चिकित्सा सहायता लेने की) व्यक्त की है, जो (केंद्र सरकार के ) हस्तक्षेप के अधीन है।”

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इस पर पीठ ने उनसे पूछा, “क्या आपने उन्हें बताया है कि हमने इस उद्देश्य के लिए एक समिति गठित की है? आपका रवैया सुलह के लिए बिल्कुल भी नहीं है, यही समस्या है…वे चिकित्सा सहायता के साथ अपना अनशन जारी रख सकते हैं। समिति की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है…हम जानते हैं कि कुछ लोग राजनीतिक बयान दे रहे हैं। उनमें कुछ किसान नेता भी हैं। दल्लेवाल के लिए उनकी क्या मंशा है, इस पर भी गौर किया जाना चाहिए।”

पीठ ने आगे कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों की ओर से मीडिया में जानबूझकर यह दिखाने का प्रयास किया गया कि अदालत श्री दल्लेवाल पर अनशन तोड़ने के लिए दबाव डाल रही है।

शीर्ष अदालत ने कहा, “हमारे निर्देश उनका अनशन तोड़ने के नहीं थे। हमने सिर्फ इतना कहा कि उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए और फिर उनका अनशन जारी रह सकता है। अस्पताल में उन्हें भर्ती कराने का मतलब यह नहीं है कि अनशन टूट गया है। हमारी चिंता उनकी जान को कोई नुकसान न पहुंचाना है। एक किसान नेता के रूप में उनका जीवन कीमती है। वह किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े नहीं हैं। वह सिर्फ किसानों के मुद्दे को उठा रहे हैं।”

इसके बाद सिंह ने पीठ के समक्ष फिर थोड़ा समय मांगा और कहा कि अधिकारी मौके पर हैं और राज्य सरकार इस मामले में सभी आवश्यक कदम उठाएगी।

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से अनुपालन हलफनामा दाखिल करने को निर्देश दिया और कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार छह जनवरी 2025 को की जाएगी।

पीठ के समक्ष 31 दिसंबर, 2024 को पंजाब सरकार ने बताया था कि मंगलवार को प्रदर्शनकारी किसानों ने एक प्रस्ताव दिया है कि अनशन पर बैठे उनके नेता दल्लेवाल तभी चिकित्सा सहायता लेंगे, जब केंद्र कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी सहित उनकी अन्य मांगों पर उनसे बात करने के लिए तैयार हो जाएगी।

इसके बाद शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार को श्री दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता लेने के लिए मनाने के अनुरोध के लिए अतिरिक्त तीन दिन दिए थे।

दल्लेवाल किसानों की उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी सहित विभिन्न मांगों को लेकर पंजाब हरियाणा सीमा पर 26 नवंबर से आमरण अनशन पर बैठे हैं। शीर्ष अदालत ने श्री दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता के मामले में अपने आदेश पर अमल नहीं होने को लेकर 28 दिसंबर को भी पंजाब सरकार से अपनी नाराजगी व्यक्त की थी।

शीर्ष अदालत इस मामले में दायर एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार द्वारा भूख हड़ताल पर बैठे दल्लेवाल को 20 दिसंबर के अदालती आदेश के अनुसार चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में विफल रहने के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की गई थी।

शीर्ष अदालत ने 28 दिसंबर 2024 को भी पंजाब सरकार को फटकार लगाई थी और श्री दल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया है।

अदालत ने इसके साथ ही यह भी कहा था कि राज्य सरकार को यदि जरूरत पड़े तो वह केंद्र सरकार से सैन्य सहायता लेने के लिए स्वतंत्रता है।

गैर-राजनीतिक संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले किसान 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा पर धरने पर बैठे हुए हैं। उस दिन पुलिस ने उनके दिल्ली मार्च को वहां रोक दिया था।

उन आंदोलनकारी किसानों में से 101 किसानों के एक समूह ने छह से 14 दिसंबर के दौरान तीन बार पैदल दिल्ली मार्च करने का प्रयास किया, लेकिन हरियाणा के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक दिया। ये आंदोलनकारी किसान कर्ज माफी, पेंशन, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी पर लगाम लगाने, आंदोलनकारी किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने और 2021 के लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं।

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