हरिद्वार। श्री पंच दशनाम आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान में अखाड़ा परिषद नाम की कोई स्थायी संस्था नहीं है। उन्हाेंने कहा कि कुंभ मेला की समाप्ति के साथ ही अखाड़ा परिषद भी कढ़ी पकोड़े के भोज के साथ समाप्त हो जाती है।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने बताया कि अखाड़ा परिषद के नाम से काेई स्वतंत्र संस्था नहीं है, बल्कि यह अखिल भारतीय षड् दर्शन अखाड़ा परिषद के रूप में जानी जाती है।यह परिषद शम्भू दल से जुड़े 6 सन्यासी अखाड़ाें- आवाह्न, अटल, महानिर्वाणी, आनन्द, निरंजनी, जूना-के साथ-साथ एक ब्रह्मचारियाें का अग्नि अखाड़ा, दाे रामादल, एक वैष्णव, दाे उदासीन और एक निर्मल अखाड़े से मिलकर बनती है। यदि इनमें से काेई भी अखाड़ा शामिल नहीं हाेता, ताे उसे पूर्ण अखाड़ा परिषद नहीं कहा जा सकता।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि अखिल भारतीय षड् दर्शन अखाड़ा परिषद का गठन कुंभ आदि पर्वों को सकुशल सम्पन्न कराने के लिए किया जाता था, जो कुम्भ मेला से पहले मेला अधिकारी से वार्ता करने के लिये गठित होती थी, जिसमें प्रत्येक अखाड़े के शाही स्नान का रूट व स्नान समय तथा अखाड़ों को मेला से सुविधा की मांग की जाती थी। कहा कि मेला अधिकारी के यहां बैइक आदि व अन्य वार्ताओं के दौरान अधिक भीड़ न हो, इसलिये परिषद में शामिल प्रत्येक अखाड़े के दो प्रतिनिधि शामिल किए जाते हैं, जो वार्ता आदि कार्यों के लिए अधिकृत होते हैं।
इसके अलावा अखाड़ा परिषद का कोई कार्य नही है। कहा कि मेला समाप्ति के साथ कढ़ी पकोड़े के भोज के साथ ही अखाड़ा परिषद भंग हो जाती थी। अब हर समय अखाड़ा परिषद का ही राग अलापा जाता है।