यदि हम असफल हैं तो अपने कारण से। अपनी गलती से ही हम सफलता के दर्शन नहीं कर सके। हमने दो बड़ी भूल की- प्रथम तो हमने पुरूषार्थ नहीं किया और दूसरी, हमने समय से मूल्य को नहीं समझा। श्रम करने में लज्जा अनुभव की, उसके महत्व को नहीं समझा। प्रभु ने यह अमूल्य जीवन दिया और उसमें कार्य करने को पर्याप्त समय दिया, जिसे हमने व्यर्थ की बातों में नष्ट कर दिया। इसलिए हम असफल हो गये, किन्तु असफलता का दोष बिना सोचे-समझे हमने दूसरों को दे दिया। दूसरों को ही उत्तरदायी ठहरा दिया।
हम चाहे किसी भी आयु वर्ग में हों, यदि आज भी निष्क्रियता का त्याग करके श्रम और समय के महत्व को समझ लें तो हम अब भी सफलता को सुनिश्चित कर सकते हैं। कर्म करने वाला व्यक्ति निष्क्रिय रहने वाले से अनेकों गुणा श्रेष्ठ है।
सौभाग्य से श्रम के साथ प्रतिभा का भी योग हो तो सोने में सुगन्ध के समान है। कर्मठ व्यक्ति प्रतिभा सम्पन्न न होने पर भी निष्क्रिय व्यक्ति से आगे निकल जाता है। मंद गति वाली चीटीं भी अपने कर्मठ स्वाभाव के कारण सैंकडों योजन तक चली जाती है, किन्तु न चलता हुआ गरूड जैसा तीव्रगामी पक्षी भी एक कदम नहीं चल पाता।
श्रम सर्वोपरि है। कम बुद्धि और शरीर से दुर्बल व्यक्ति भी समय का सदुपयोग करते हुए श्रम करके अपना भोजन तो जुटा ही लेता है, जबकि निष्क्रिय बलशाली को अपना पेट भरने के लिए भी दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। इसलिए समय का सम्मान करते हुए जो श्रम के महत्व को समझ जायेगा, सफलता उसका चरण चुम्बन अवश्य करेगी।