आपने खूब जप-जाप किये, पूजा-पाठ किया, इबादत की, व्रत-रोजे भी खूब रखे, किन्तु किसी दुखिया की पीड़ा देखकर तुम्हारी आंखे नम न हुई तो यह सब व्यर्थ ही है, क्योंकि अशक्त असहाय, अभावग्रस्त किसी के द्वारा सताये गये दीन-दुखियों की मदद करना, उनके दुख निवारण का यथा सम्भव प्रयास करना, उन्हें सांत्वना देना, रोते हुओ के आंसू पोछना, उनके दुख बांटना ही सच्ची भक्ति है, सच्ची इबादत है।
यह उपासना स्थल में जाकर की गई पूजा या इबादत से कम नहीं, बल्कि एक अर्थ में श्रेष्ठ है, क्योंकि पूजा-पाठ या इबादत तो मात्र मन और वाणी से की जाती है, जबकि इसे तो कर्म द्वारा धरातल पर उतारा जाता है।
ज्ञान, भक्ति, योग पूजा, उपासना का लाभ तभी है, जब हम दूसरों की वेदना, कष्ट, पीडा को अपनी पीडा माने, उसे हृदय से अनुभव करे तथा उस वेदना, कष्ट, पीडा को दूर करने का प्रयास भी करें, हमें प्रत्येक पीडि़त के आंसुओं का मूल्य जानना चाहिए, सच्चे अर्थों में श्रेष्ठ मनुष्य वे ही हैं, प्रभु के सच्चे भक्त भी वहीं है, जो दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझता हो और जैसे प्रयास अपने लिए करता है, ऐसे ही प्रयास उनके लिए भी करें।
किसी को रोता देखकर सहज रूप में लेना अथवा उनके दुख की खिल्ली उड़ाना पाप है, अधर्म है, इसका कोई प्रायश्चित भी नहीं। आप किसी की प्रसन्नता का कारण यदि नहीं बन सकते तो दूसरों की प्रसन्नता छीने भी नहीं और न ही उनकी प्रसन्नता में बाधक बनें।