Monday, February 24, 2025

अनमोल वचन

किसी घटना के घट जाने पर कुछ भाग्यवादी लोग कहा करते हैं ‘होई है वही जो राम रचि राखा अर्थात ईश्वर ने जो भाग्य में लिख दिया वही होगा। उनकी दृष्टि में प्रयास और पुरूषार्थ करने की बात व्यर्थ है।

हमें भाग्यवादी बने रहने की अपेक्षा यह जानना चाहिए कि भाग्य या प्रारब्ध क्या है? मनुष्य जब कर्म करता है और जब तक वह कर्म फल देने की स्थिति में नहीं हो जाता, तब तक कर्म का पहला रूप रहता है और इस पहले रूप को क्रियमाण क्रम कहते हैं और जब कर्म पूरा होकर फल देने योग्य होता है तो किये गये कर्मों के भंडार में जमा हो जाता है, तब उसे संचित कर्म कहने लगते हैं और उन्हीं संचित कर्मों में से जिस कर्म का फल मिलने लगता है, उसी को प्रारब्ध कहा जाने लगता है।

स्पष्ट है कि प्रारब्ध मात्र ईश्वर प्रदत्त अथवा थोपी गई वस्तु नहीं, मनुष्य के द्वारा किये गये शुभ-अशुभ कर्मों का ही फल है। वास्तव में जीव स्वयं अपने प्रारब्ध का निर्माता है। यदि हम किसी प्रकार के दुख या कष्ट से पीडि़त हैं तो उसके लिए अपने स्वाभावानुसार दूसरों को दोष देने लगते हैं। सच यह है कि उसके कारण हम स्वयं है, हमारे द्वारा किये गये अशुभ कर्म हैं।

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