आपके भीतर परमात्मा को पाने की उत्कंठा है तो सीधे और सरल पथ से अपने अन्तरतम में जाना होगा। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं। उस पथ को जानने के लिए किसी तीर्थ पर नहीं किसी परम सत्य के ज्ञाता, योगी, सद्गुरू के पास जाना होगा।
वे ही इस रहस्य को बतायेंगे कि किस प्रकार हमें अपने विचारों को सूक्ष्म से सूक्ष्म करना है। आत्मा मन के कई स्तरों से अत्यन्त सूक्ष्म है। मन के ये स्तर परिवर्तनशील और क्षण जीवी हैं। अत: आध्यात्मिक ज्ञान से जिस आनन्द को प्राप्त करेंगे, वही शाश्वत आनन्द होगा, जो हमें सद्गुरू से प्राप्त होगा।
अस्थायी कालवद्ध वस्तुएं आयेंगी और चली जायेंगी। कभी वे हमें हंसायेंगी और कभी रूलायेंगी। ये कितनी भी प्रिय क्यों न हों एक दिन वे निश्चित रूप से हमें एक झटके में छोड़कर चली जायेंगी, किन्तु ईश्वर हमें सहारा देंगे। ईश्वर शाश्वतचिरतन है अपरिवर्तनीय सत्ता है। कठोपनिषद में यम कहते हैं ‘हे नचिकेता परम पुरूष के साम्राज्य का महाद्वार तुम्हारे समाने है, परन्तु नचिकेता इस परम ऐश्वर्य को ठुकरा देता है, क्योंकि उसे विनाशशील और अविनाशी में भेद का ज्ञान था।
तथ्य यह है कि मानसिक विकास के साथ जब कोई खंड सुख से अखंड आनन्द की ओर बढ़ता है, तब उसे भौतिक सुख से अधिक आत्मिक सुख में अधिक रूचि हो जाती है।