मुजफ्फरनगर। कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में शुरू हुए किसान आंदोलन को आज पूरे चार साल हो गए हैं। इस ऐतिहासिक आंदोलन की चौथी वर्षगांठ पर संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर देशभर में जिला मुख्यालयों पर एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया गया।
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दिल्ली आंदोलन की चौथी वर्षगांठ के मौके पर आज भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले सैकड़ों किसान मुजफ्फरनगर जिला कलेक्ट्रेट परिसर में इकट्ठा हुए। मंगलवार सुबह 11 बजे से शुरू हुए इस धरना प्रदर्शन की अध्यक्षता चौधरी नरेश टिकैत ने की। उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि “दिल्ली आंदोलन के दौरान सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच हुई बातचीत में सरकार अपने वादों पर खरी नहीं उतरी है।“ उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं, और उनकी मांगें लगातार अनसुनी की जा रही हैं।
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चौधरी टिकैत ने कहा कि देशभर में किसान अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि गन्ने की खेती पर भारी लागत आ रही है, लेकिन सरकार ने गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाया। उन्होंने गन्ना मूल्य ₹500 से ₹550 प्रति क्विंटल करने की मांग की। किसानों को आलू और धान की बिक्री में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। गेहूं की कीमत ₹3000 प्रति क्विंटल हो चुकी है, जिससे खाने-पीने की वस्तुएं महंगी हो रही हैं।
टिकैत ने कहा कि सरकार को गन्ना अनुसंधान केंद्रों से गन्ने की खेती पर होने वाली लागत का आंकड़ा लेना चाहिए ताकि सही मूल्य निर्धारण हो सके। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वे गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी करें और किसानों को राहत दें। धरने में शामिल किसानों ने कहा कि सरकार उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही है। फसल उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय नहीं किया गया है।
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टिकैत ने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर भी कई समस्याएं हैं। गन्ने की फसल के साथ-साथ आलू और धान की बिक्री, गेहूं की बुवाई, और बढ़ती महंगाई ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान किसानों की समस्याओं की ओर खींचना था। चौधरी टिकैत ने कहा कि अगर किसानों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
कहा कि किसान आंदोलन केवल कृषि कानूनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों के सम्मान, अधिकार और न्याय के लिए लड़ाई है। कहा कि आज की युवा पीढ़ी खेती से दूरी बना रही है और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख कर रही है। उन्होंने कहा कि“आने वाले समय में खेती करने वाला कोई नहीं बचेगा। हमारी अगली पीढ़ी खेती को चुनने के बजाय अन्य विकल्पों की ओर जा रही है। यह किसानों और देश के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।” खेती अब घाटे का सौदा बनती जा रही है। इनकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे खेती की लागत बढ़ रही है। खेती के लिए जरूरी बिजली के दाम भी बढ़ गए हैं। ये इतनी महंगी हो गई हैं कि किसानों के लिए उन्हें खरीदना मुश्किल हो गया है। कहा कि इतनी लागत के बावजूद किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है।
नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों के पास अब आंदोलन के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है, लेकिन वे चाहते हैं कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहे। “हम नहीं चाहते कि आंदोलन के दौरान हिंसा हो। हमारी लड़ाई केवल किसानों के हक के लिए है। सरकार को हमारी समस्याओं को समझकर उनका समाधान करना चाहिए।” कहा कि बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करना और किसानों को राहत देना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो स्थिति और भी खराब हो सकती है। “किसान देश को तोड़ने की बात नहीं कर रहा है। हम सिर्फ अपनी समस्याओं को उठाकर समाधान की मांग कर रहे हैं।” फसलों के लिए उचित और स्थिर मूल्य। खेती की लागत में कमी के लिए डीजल, बिजली, और खाद पर सब्सिडी। गन्ना मूल्य को बढ़ाकर ₹500-₹550 प्रति क्विंटल किया जाए। कृषि से जुड़ी योजनाओं का सही और तेज़ी से क्रियान्वयन। कहा कि किसानों का संघर्ष केवल उनकी जरूरतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता दे और समय रहते समाधान निकाले।
उन्होंने कहा कि “सरकार का रवैया किसानों और आम जनता के हित में नहीं है, और प्रशासनिक अधिकारियों की बेलगाम हरकतें स्थिति को और बिगाड़ रही हैं।”कहा कि दिल्ली किसान आंदोलन पूरी दुनिया में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि इस आंदोलन के दौरान 700 किसान शहीद हुए और यह लंबे समय तक चला। उन्होंने कहा कि“आंदोलन तो सरकार की नीतियां करवाती हैं। किसान तो अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर होता है।”
धार्मिक स्थलों को लेकर हो रहे विवादों पर टिकैत ने सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने संभल की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि”धार्मिक स्थलों पर छेड़छाड़ करना गलत है। सरकार को चाहिए कि वह इन मुद्दों पर संयम बरते। अगर सरकार ऐसा नहीं करती, तो प्रदेश और जनता हमेशा अशांति की आग में जलती रहेगी।”उन्होंने कहा कि “पहले क्या हुआ, इसे छोड़ना चाहिए और अब शांति बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।”
संभल की घटना को लेकर टिकैत ने प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया और इसे उनकी लापरवाही बताया। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों के मुद्दे पर छेड़छाड़ करना न केवल समाज के लिए खतरनाक है, बल्कि इससे जनता और प्रदेश की स्थिति और खराब होती है।
नरेश टिकैत ने कहा कि वर्तमान सरकार किसानों के खिलाफ है और उनका रवैया तानाशाही है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकारों पर हमला करते हुए कहा कि अगर मतदाताओं को उनके मत का अधिकार भी छीना जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी नीतियों में सुधार लाए और जनता को न्याय दे।”कहा कि सरकार का किसान विरोधी रवैया लंबे समय तक नहीं चलेगा। उन्होंने प्रशासन और सरकार से अपील की कि वे किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लें और उनसे संवाद करके समाधान निकालें।”इस प्रदेश को कभी तो शांत रहने दो। सरकार को चाहिए कि वह समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखे, वरना स्थिति और बिगड़ सकती है।”कहा कि किसानों की समस्याओं का समाधान करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि बेलगाम प्रशासनिक अधिकारियों पर भी लगाम लगानी चाहिए।”सरकार को किसानों के हित में नीतियां बनानी चाहिए और उनकी मांगों को समय रहते पूरा करना चाहिए, ताकि समाज और देश में स्थिरता बनी रहे।”