मुजफ्फरनगर। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में किसान संगठनों के द्वारा चलाये गये आंदोलन के चार साल पूर्ण होने पर किसानों ने आंदोलन की वर्षगांठ सड़कों पर उतरकर मनाई।
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर चौथी वर्षगांठ पर देशव्यापी प्रदर्शन के तहत भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता मंगलवार को जिला मुख्यालय पर उतरे। यहां यूनियन नेताओं के साथ किसानों ने शहर में जुलूस निकाला और फिर डीएम दफ्तर का घेराव करते हुए धरना दिया।
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यूनियन नेताओं ने केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों की नीतियों के खिलाफ जमकर निशाना साधा और कहा कि चार साल से किसान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर उनसे किया वादा पूरा करने के लिए देख रहा है, लेकिन वो पूरा नहीं हो रहा। ये सरकार याद रखे कि आंदोलन खत्म हुआ है, संघर्ष जारी है।
पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली आंदोलन के चार साल पूर्ण होने के अवसर पर मंगलवार को जिला मुख्यालय घेरने के लिए यूनियन के पदाधिकारियों के साथ जनपद के किसान भारी संख्या में महावीर चौक स्थित कार्यालय पर एकत्र हुए और फिर यहां से जुलूस के रूप में पैदल मार्च करते हुए गन्ना हाथों में उठाये कलेक्ट्रेट स्थित डीएम दफ्तर पहुंचे। यहां मुख्यालय का घेराव करने के लिए किसानों ने भारी संख्या में पहुंचकर धरना दिया।
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चार साल पहले 26 नवम्बर के दिन ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली कूच किया, लेकिन दिल्ली में प्रवेश नहीं मिलने पर किसान गाजीपुर बॉर्डर सहित दिल्ली के अन्य बॉर्डर पर आंदोलन के लिए बैठ गये थे। यह आंदोलन 378 दिन चला। इसके चार वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर भाकियू नेतृत्व ने सभी मुख्यालयों पर प्रदर्शन का ऐलान किया था।
आज जनपद के देहात क्षेत्र से किसान भारी संख्या में मुख्यालय पहुंचा और यूनियन नेताओं के साथ डीएम दफ्तर पर धरना दिया। यहां पर नेताओं ने जमकर अपनी भड़ास भाजपा सरकारों की नीतियों के खिलाफ निकाली। कहा गया कि दिल्ली आंदोलन फसल नहीं, बल्कि नस्ल बचाने का आंदोलन था। कई महीनों के संघर्ष के बाद में देश की सरकार ने अपनी गलती का एहसास किया और तीनों काले कानूनों को वापिस ले लिया, लेकिन तब तक हम अपने 750 किसानों को शहीद होते देख चुके थे।
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नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों के पास अब आंदोलन के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है, लेकिन वे चाहते हैं कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहे। “हम नहीं चाहते कि आंदोलन के दौरान हिंसा हो। हमारी लड़ाई केवल किसानों के हक के लिए है। सरकार को हमारी समस्याओं को समझकर उनका समाधान करना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करना और किसानों को राहत देना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो स्थिति और भी खराब हो सकती है। “किसान देश को तोड़ने की बात नहीं कर रहा है। हम सिर्फ अपनी समस्याओं को उठाकर समाधान की मांग कर रहे हैं।” फसलों के लिए उचित और स्थिर मूल्य। खेती की लागत में कमी के लिए डीजल, बिजली, और खाद पर सब्सिडी। गन्ना मूल्य को बढ़ाकर ₹500-₹550 प्रति क्विंटल किया जाए। कृषि से जुड़ी योजनाओं का सही और तेज़ी से क्रियान्वयन।
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उन्होंने कहा कि किसानों का संघर्ष केवल उनकी जरूरतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता दे और समय रहते समाधान निकाले।
उन्होंने कहा कि “सरकार का रवैया किसानों और आम जनता के हित में नहीं है, और प्रशासनिक अधिकारियों की बेलगाम हरकतें स्थिति को और बिगाड़ रही हैं।” उन्होंने कहा कि दिल्ली किसान आंदोलन पूरी दुनिया में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि इस आंदोलन के दौरान 700 किसान शहीद हुए और यह लंबे समय तक चला। उन्होंने कहा कि“आंदोलन तो सरकार की नीतियां करवाती हैं। किसान तो अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर होता है।”
टिकैत ने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर भी कई समस्याएं हैं। गन्ने की फसल के साथ-साथ आलू और धान की बिक्री, गेहूं की बुवाई, और बढ़ती महंगाई ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान किसानों की समस्याओं की ओर खींचना था। चौधरी टिकैत ने कहा कि अगर किसानों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
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कहा कि किसान आंदोलन केवल कृषि कानूनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों के सम्मान, अधिकार और न्याय के लिए लड़ाई है। कहा कि आज की युवा पीढ़ी खेती से दूरी बना रही है और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख कर रही है। उन्होंने कहा कि“आने वाले समय में खेती करने वाला कोई नहीं बचेगा। हमारी अगली पीढ़ी खेती को चुनने के बजाय अन्य विकल्पों की ओर जा रही है। यह किसानों और देश के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।”
उन्होंने कहा कि खेती अब घाटे का सौदा बनती जा रही है। इनकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे खेती की लागत बढ़ रही है। खेती के लिए जरूरी बिजली के दाम भी बढ़ गए हैं। ये इतनी महंगी हो गई हैं कि किसानों के लिए उन्हें खरीदना मुश्किल हो गया है। इतनी लागत के बावजूद किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है।
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उन्होंने कहा कि सरकार के आश्वासन के बाद में दिल्ली के सभी बॉर्डरों से आन्दोलन स्थगित कर दिया गया, लेकिन समस्या का हल आज तक भी नहीं हो पाया है और एमएसपी कानून सहित सभी मागों को लेकर हमारा संघर्ष आज भी जारी है। धरने के बाद किसानों से संबंधित गन्ना भुगतान व बिजली की समस्या, शामली जिले में भाज्जू कट, गन्ना मूल्य घोषित करने, एमएसपी कानून बनाने सहित अन्य मांगों को लेकर प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया।
धार्मिक स्थलों को लेकर हो रहे विवादों पर टिकैत ने सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने संभल की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि”धार्मिक स्थलों पर छेड़छाड़ करना गलत है। सरकार को चाहिए कि वह इन मुद्दों पर संयम बरते। अगर सरकार ऐसा नहीं करती, तो प्रदेश और जनता हमेशा अशांति की आग में जलती रहेगी।”उन्होंने कहा कि “पहले क्या हुआ, इसे छोड़ना चाहिए और अब शांति बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।” उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों के मुद्दे पर छेड़छाड़ करना न केवल समाज के लिए खतरनाक है, बल्कि इससे जनता और प्रदेश की स्थिति और खराब होती है।
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नरेश टिकैत ने कहा कि वर्तमान सरकार किसानों के खिलाफ है और उनका रवैया तानाशाही है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकारों पर हमला करते हुए कहा कि अगर मतदाताओं को उनके मत का अधिकार भी छीना जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी नीतियों में सुधार लाए और जनता को न्याय दे।”
उन्होंने कहा कि सरकार का किसान विरोधी रवैया लंबे समय तक नहीं चलेगा। उन्होंने प्रशासन और सरकार से अपील की कि वे किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लें और उनसे संवाद करके समाधान निकालें।”इस प्रदेश को कभी तो शांत रहने दो। सरकार को चाहिए कि वह समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखे, वरना स्थिति और बिगड़ सकती है।” उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं का समाधान करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि बेलगाम प्रशासनिक अधिकारियों पर भी लगाम लगानी चाहिए।”सरकार को किसानों के हित में नीतियां बनानी चाहिए और उनकी मांगों को समय रहते पूरा करना चाहिए, ताकि समाज और देश में स्थिरता बनी रहे।”
इस दौरान मुख्य रूप से महासचिव ओमपाल सिंह मलिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश महासचिव योगेश शर्मा, पुरकाजी चेयरमैन जहीर फारूकी, महकार सिंह गुर्जर, धीरज लाटियान, ठा. सतेन्द्र चौहान, राजेन्द्र सिंह सैनी, सतेन्द्र बालियान, जिलाध्यक्ष नवीन राठी, श्यामप्राल सिंह चेयरमैन, शक्ति सिंह, बिजेन्द्र बालियान, प्रताप प्रधान, योगेन्द्र पहलवान, रणधौल राठी, देव अहलावत, विकास शर्मा, ललित त्यागी, संजीव पंवार, स. अमीर सिंह, योगेश बालियान, विकास, सतेंद्र चौहान, गुलबहार राव, शाहिद आलम, सुधीर सहरावत सहित हजारों किसान मौजूद रहे।