Friday, September 20, 2024

अदालती सुनवाई स्थगन की संस्कृति को बदलना समय की मांग : मुर्मु

नयी दिल्ली- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना को भारत की परंपरा का हिस्सा बताते हुए रविवार को कहा कि अदालतों में सुनवाई संबंधी स्थगन की संस्कृति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।

श्रीमती मुर्मु ने उच्चतम न्यायालय की ओर से आयोजित जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन पर 800 से अधिक न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए ये अपील की।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

इस अवसर पर उन्होंने शीर्ष अदालत के ध्वज और प्रतीक चिन्ह का भी अनावरण किया।

सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। अपने पूर्व के संबोधन का जिक्र करते हुए उन्होंने दोहराया कि लोग देश के हर न्यायाधीश को भगवान मानते हैं। हमारे देश के हर न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें।

उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर यह नैतिक दायित्व न्यायपालिका का प्रकाश स्तंभ है। जिला स्तर की अदालतें करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करती हैं। इसलिए जिला अदालतों के माध्यम से लोगों को संवेदनशीलता और तत्परता के साथ कम खर्च पर न्याय दिलाना ही हमारी न्यायपालिका की सफलता का आधार है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अपनी स्थापना के बाद से ही भारत के उच्चतम न्यायालय ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्यायिक प्रणाली के सजग प्रहरी के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका से जुड़े सभी वर्तमान और पूर्व लोगों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के कारण भारतीय न्यायशास्त्र का बहुत सम्मानजनक स्थान है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्षों में जिला स्तर पर न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, प्रशिक्षण और मानव संसाधनों की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ, लेकिन इन सभी क्षेत्रों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्हें विश्वास है कि सुधार के सभी आयामों पर तेजी से प्रगति जारी रहेगी।

श्रीमती मुर्मु ने कहा कि लंबित मामलों और लंबित मामलों की संख्या न्यायपालिका के सामने एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने 32 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मामलों के गंभीर मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विशेष लोक अदालत सप्ताह जैसे कार्यक्रमों का अधिक से अधिक आयोजन किया जाना चाहिए। इससे लंबित मामलों से निपटने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि इस सम्मेलन के एक सत्र में केस प्रबंधन से संबंधित कई पहलुओं पर चर्चा की गई। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन चर्चाओं से व्यावहारिक परिणाम सामने आएंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान पंचायतों और नगर पालिकाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर विधायी और कार्यकारी निकायों की शक्ति और जिम्मेदारियों का प्रावधान करता है। उन्होंने जानना चाहा कि क्या हम स्थानीय स्तर पर इनके समतुल्य न्याय प्रणाली के बारे में सोच सकते हैं।

उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा और स्थानीय परिस्थितियों में न्याय प्रदान करने की व्यवस्था करने से न्याय को हर किसी के दरवाजे तक पहुंचाने के आदर्श को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

श्रीमती मुर्मु ने कहा कि हमारी न्यायपालिका के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनके समाधान के लिए सभी हितधारकों द्वारा समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी। उदाहरण के तौर पर साक्ष्य और गवाहों से संबंधित मुद्दों का समाधान खोजने के लिए न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन को मिलकर काम करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि जब बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है।

उन्होंने कहा कि यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ और खुलेआम घूमते रहते हैं। जो लोग अपराधों से पीड़ित होते हैं, वे इस डर में जीते हैं जैसे कि उन गरीबों ने कोई अपराध किया हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांवों के गरीब लोग अदालत जाने से डरते हैं। वे बहुत मजबूरी में ही अदालत की न्याय प्रक्रिया में भागीदार बनते हैं। अक्सर वे चुपचाप अन्याय सहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि न्याय के लिए लड़ना उनके जीवन को और अधिक कष्टमय बना सकता है। उनके लिए गांव से दूर एक बार भी अदालत जाना बहुत बडे़ मानसिक और आर्थिक दबाव का कारण बन जाता है। ऐसे में कई लोग उस पीड़ा की कल्पना भी नहीं कर सकते जो अदालती सुनवाई के स्थगन की संस्कृति के कारण गरीब लोगों को होती है। इस स्थिति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि जेल में बंद महिलाओं के बच्चों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी प्राथमिकता उनके स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों का आकलन और सुधार करना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किशोर अपराधी भी अपने जीवन के शुरुआती दौर में हैं। उनकी सोच और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपाय करना, उन्हें जीवन जीने के लिए उपयोगी कौशल प्रदान करना और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

श्रीमती मुर्मु ने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि शीर्ष न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है। इसके तहत पहली बार जेल में बंद आरोपियों और निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई हिस्सा काट चुके लोगों को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आपराधिक न्याय की नई प्रणाली को इसी तत्परता से लागू करके हमारी न्यायपालिका न्याय के एक नए युग की शुरुआत करेगी।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,334FansLike
5,410FollowersFollow
107,418SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय