Farming Tips : जीरे की खेती किसानों के लिए बन सकती है सोने की खान, सही समय पर बुवाई और आधुनिक तकनीक से मिल सकता है लाखों का मुनाफा और जीवनभर की आर्थिक मजबूती

खेती सिर्फ मेहनत का नाम नहीं है बल्कि सही समय पर सही निर्णय लेने का नाम भी है। जब किसान बदलते मौसम और बाजार की मांग को ध्यान में रखकर नई फसलों का चुनाव करते हैं तो उनकी मेहनत का फल और भी ज्यादा मीठा हो जाता है। आज हम बात कर रहे हैं जीरे की खेती की जो कम मेहनत और सही तकनीक के साथ किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है।
जीरे की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बस ध्यान इतना रखना है कि खेत में पानी जमने न पाए क्योंकि जीरे की फसल को जल निकास की उचित व्यवस्था चाहिए। मिट्टी तैयार करने के बाद अगर किसान 1 नवंबर से 25 नवंबर के बीच बुवाई करें और तापमान 24 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे तो पैदावार शानदार मिलती है। खेत में अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद या कंपोस्ट डालने से मिट्टी की ताकत और उत्पादन दोनों बढ़ जाते हैं।
सिंचाई की बात करें तो जीरे की फसल को हर 8 से 10 दिन में पानी देना जरूरी है। लेकिन सबसे खास बात है खरपतवार से बचाव। खेत में खरपतवार ज्यादा होंगे तो फसल का दम घुट जाएगा और उत्पादन कम होगा। यही कारण है कि विशेषज्ञ पेंडीमेथालिन जैसे खरपतवारनाशक का उपयोग करने की सलाह देते हैं। जितना खेत साफ रहेगा उतनी ही अच्छी पैदावार मिलेगी।
कृषि प्रशिक्षण केंद्र मुरादाबाद के विशेषज्ञ बताते हैं कि जीरे की खेती सितंबर के अंत से लेकर नवंबर तक की जा सकती है और फरवरी-मार्च तक फसल तैयार हो जाती है। किसान अगर मेहनत और देखभाल से यह फसल लें तो एक एकड़ से 40 से 50 हजार रुपये तक का मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं।
दोस्तों खेती हमेशा मेहनत और धैर्य मांगती है लेकिन जब मेहनत सही दिशा में की जाए तो उसका फल हमेशा मीठा ही मिलता है। जीरे की खेती किसानों को आर्थिक मजबूती देने के साथ-साथ बाजार में उनकी पहचान भी बना सकती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और सामान्य कृषि पद्धतियों पर आधारित है। व्यावसायिक स्तर पर खेती करने से पहले स्थानीय कृषि वैज्ञानिक या कृषि विभाग से सलाह जरूर लें