कड़ाके की ठंड में फसलों को बचाने का देसी तरीका पाले से सुरक्षा का सबसे कारगर उपाय
सर्दियों का मौसम जहां आम लोगों के लिए ठिठुरन लेकर आता है वहीं किसानों के लिए यह समय सबसे ज्यादा चिंता वाला होता है. जब तापमान अचानक गिरता है और शीतलहर चलती है तब खेतों में खड़ी फसलें खतरे में आ जाती हैं. रबी सीजन की फसलें खास तौर पर इस मौसम में बेहद संवेदनशील हो जाती हैं. ठंड का सीधा असर पौधों की बढ़वार और उत्पादन पर पड़ता है जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिरने का डर बना रहता है.
शीतलहर का असर और फसलों की बढ़ती परेशानी
ठंड से बचाव के लिए अपनाया जा रहा देसी उपाय
फसलों को पाले से बचाने के लिए किसान पुराने और भरोसेमंद देसी तरीकों का सहारा ले रहे हैं. सर्द रातों में खेतों में धुआं करना एक ऐसा उपाय है जो पीढ़ियों से अपनाया जा रहा है. जब रात के समय तापमान बहुत नीचे चला जाता है तब खेतों की मेड़ों पर सूखे फसल अवशेष जलाकर धुआं किया जाता है. इससे खेत के आसपास एक गर्म परत बन जाती है जो ठंडी हवा के प्रभाव को कम कर देती है.
धुएं से कैसे बनता है सुरक्षा कवच
धुआं करने से खेत के ऊपर एक तरह का हरित गृह प्रभाव बनता है. इसमें दिन की बची हुई ऊष्मा खेत के वातावरण में बनी रहती है और बाहर नहीं निकल पाती. ठंडी हवा सीधे पौधों तक नहीं पहुंच पाती जिससे पाले का असर कम हो जाता है. यह तरीका सरल भी है और कम खर्च वाला भी इसलिए छोटे और सीमांत किसान इसे आसानी से अपना पाते हैं.
सिंचाई और धुएं का संयुक्त असर
सिर्फ धुआं ही नहीं बल्कि रात के समय हल्की सिंचाई भी फसलों को ठंड से बचाने में मदद करती है. मिट्टी में नमी रहने से तापमान बहुत ज्यादा नीचे नहीं जाता. जब सिंचाई और धुएं दोनों का उपयोग साथ में किया जाता है तब पाले का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इससे फसल सुरक्षित रहती है और किसान को राहत मिलती है.
देसी ज्ञान की आज भी है बड़ी अहमियत
आधुनिक तकनीक के इस दौर में भी देसी ज्ञान की अहमियत कम नहीं हुई है. खेतों में धुआं करना जैसे उपाय आज भी किसानों के लिए संकट के समय ढाल बनकर सामने आते हैं. यह तरीका सस्ता है आसान है और तुरंत असर दिखाता है. यही कारण है कि ठंड बढ़ते ही गांवों में खेतों से उठता धुआं किसानों की सतर्कता और समझदारी का प्रतीक बन जाता है.
डिस्क्लेमर :"यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है. मौसम और फसल से जुड़ी स्थिति स्थान और परिस्थितियों के अनुसार बदल सकती है. किसी भी उपाय को अपनाने से पहले कृषि विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.
