भारत फिर से वैश्विक व्यापार में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी वाला देश बनने की सोच सकता है: सीतारमण
नयी दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को रेखांकित करते बुधवार को कहा कि भारत अपने मजबूत व्यापक आर्थिक आधार, तेज विकास दर और तेजी से बढ़ते उद्यम के बल पर आने वाले वर्षों में फिर से वही देश बनने की सोच सकता है जिसकी कभी वैश्विक व्यापार में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी हुआ करती थी।
वित्त मंत्री ने यहां 'इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव' को संबोधित करते हुए कहा कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आ रहा है। आयात शुल्क प्रतिबंधों और रणनीतिक बाधाओं के माध्यम से व्यापारिक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये घटनाक्रम उभरती हुई और विकसित दोनों तरह की अर्थव्यवस्थाओं के लिए नयी भू-आर्थिक चुनौतियां पेश करते हैं। हालांकि भारत संवाद और बातचीत के माध्यम से बदलते वैश्विक व्यापार परिवेश का सामना करने के लिए तैयार है।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि भारत वैश्विक व्यापार को निष्पक्ष और नियम-आधारित बनाते हुए अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ़तापूर्वक रचनात्मक बातचीत करेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत अलगाव की बजाय जुड़ाव में विश्वास करता है और व्यापार में विकृतियों को दूर करने के लिए वैश्विक भागीदारों के साथ काम करना जारी रखेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद, भारत अपनी घरेलू ताकतों का लाभ उठाकर वैश्विक अनिश्चितताओं को अवसरों में बदलने के प्रति आश्वस्त है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत का विकास स्थिर और जन-केंद्रित रहा है, न कि अल्पकालिक नीतिगत उपायों पर निर्भर रहा है।
उन्होंने कहा, "भारत की मजबूती ही असली कहानी है।" स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारत ने दूसरे देशों द्वारा उठाये गये कदमों पर प्रतिक्रिया दी है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप का करे।
मोदी सरकार और पहले की सरकारों के काम की तुलना करते हुए श्रीमती सीतारमण ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पहले कुछ नहीं हुआ, पहले भी बहुत कुछ हुआ, लेकिन वह बिखरा हुआ था। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले भी जालंधर में विश्वस्तरीय बल्ले बनते थे, लेकिन उनके पास वैश्विक बाजार में जाने का मौका नहीं था। उद्योगों को विशेष आर्थिक जोन तक सीमित रखा गया जबकि मौजूदा सरकार एमएसएमई के छोटे-छोटे क्लस्टरों पर भी ध्यान दे रही है, उनके लिए बाहर से बाजार से जुड़ने के मौके पैदा कर रही है।
वित्त मंत्री ने पिछले दस वर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत परिवर्तन के एक निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है। उन्होंने वित्तीय समावेशन के तेजी से विस्तार का उल्लेख किया, जिसके कारण करोड़ों नागरिक औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल हुए हैं और बचत, ऋण तथा बीमा तक पहुंच में सुधार हुआ है।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि सामाजिक विकास में भी निरंतर प्रयास किए गए हैं, जिसमें बाल देखभाल सहायता, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियां और बड़े पैमाने पर किफायती आवास की उपलब्धता शामिल है। उन्होंने कहा कि इन उपायों ने आर्थिक भागीदारी और सामाजिक सुरक्षा को मजबूत किया है।
वित्त मंत्री ने बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण सुधारों पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से ग्रामीण परिवारों को स्वच्छ पेयजल का प्रावधान, राजमार्गों का विस्तार और विभिन्न क्षेत्रों में सड़क संपर्क में सुधार शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इन निवेशों ने क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और आर्थिक दक्षता में सुधार करने में मदद की है। वित्त मंत्री ने कहा कि सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है और विकास तथा रोजगार का प्रमुख चालक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र भारत की बढ़ती वैश्विक व्यापारिक महत्वाकांक्षाओं को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
वित्त मंत्री ने नवाचार-आधारित विकास के महत्व पर भी जोर देते हुए और स्कूलों में 'अटल टिंकरिंग लैब' जैसी पहलों का उल्लेख किया, जो छात्रों के बीच वैज्ञानिक सोच और रचनात्मकता को प्रोत्साहित कर रही हैं। उनके अनुसार, भारत को भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिए तैयार करने के लिए ऐसी पहल आवश्यक हैं। श्रीमती सीतारमण ने राजकोषीय प्रबंधन पर कहा कि पारदर्शिता, जवाबदेही और विवेकपूर्ण नीति-निर्माण पर केंद्र के ध्यान ने व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत किया है। उन्होंने वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत कोविड के बाद की अवधि में अपने ऋण-जीडीपी अनुपात को धीरे-धीरे कम करने में सक्षम रहा है।
वित्त मंत्री ने कहा कि बेहतर राजकोषीय अनुशासन ने वैश्विक वित्तीय बाजारों में भारत की विश्वसनीयता बढ़ायी है और निवेशकों का विश्वास मजबूत किया है, जिससे देश बाहरी झटकों का प्रबंधन करने के लिए बेहतर स्थिति में आ गया है।
