परमाणु क्षेत्र में निजी निवेश की अनुमति देने वाला शांति विधेयक लोकसभा में पेश
नयी दिल्ली। सरकार ने नाभिकीय ऊर्जा बढ़ाने के वास्ते भारत परिवर्तन के लिए नाभिकीय ऊर्जा का सतत दोहन तथा उन्नयन विधेयक, 2025 (संक्षिप्त नाम शांति विधेयक, 2025) सोमवार को लोकसभा में पेश कर दिया। सरकार ने कहा कि यह विधेयक देश के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में 1962 के बाद सबसे बड़ा सुधार लाने वाला है। विधेयक के प्रस्ताव को मंत्रिमंडल ने गत 12 दिसंबर को मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया और सोमवार को इसे लोकसभा की पूरक कार्यसूची में शामिल कर परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सदन के पटल पर पेश किया। विधेयक का मुख्य उद्देश्य नाभिकीय ऊर्जा तथा आयनकारी विकिरण का सुरक्षित एवं सतत उपयोग बढ़ाना है, ताकि विद्युत उत्पादन के अलावा स्वास्थ्य (कैंसर उपचार), कृषि (फसल संरक्षण एवं विकिरण), जल शुद्धिकरण, उद्योग, पर्यावरण संरक्षण तथा वैज्ञानिक नवाचार जैसे क्षेत्रों में इसका व्यापक लाभ मिल सके।
विधेयक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह निजी क्षेत्र (घरेलू एवं विदेशी कंपनियों) को नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश की अनुमति देता है और इसमें किए जा रहे प्रावधानों से विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) के माध्यम से, जिससे 2047 तक 100 गीगावाट नाभिकीय क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। यह परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 तथा नागरिक नाभिकीय क्षति दायित्व अधिनियम 2010 को निरस्त कर एक आधुनिक, एकल कानूनी ढांचा स्थापित करेगा। इसमें स्वतंत्र नाभिकीय सुरक्षा नियामक की स्थापना, दायित्व नियमों में संशोधन, विवाद निपटारे के लिए विशेष न्यायाधिकरण तथा क्षति पर दावे पेश करने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है तथा नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य (2070) में योगदान देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
सरकार का मानना है कि यह विधेयक 'विकसित भारत 2047'के विजन का हिस्सा है और यह नाभिकीय प्रौद्योगिकी को स्वच्छ, स्थिर एवं आधारभूत ऊर्जा स्रोत के रूप में स्थापित कर जलवायु-अनुकूल विकास को बढ़ावा देने वाला है।
इससे पहले विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि परमाणु क्षेत्र में निजी क्षेत्र को शामिल करने का वह पुरजोर विरोध करते हैं। उनका कहना था कि इस विधेयक के जरिये परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को शामिल करने की पहल कर सरकार मानकों का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने विधेयक को संविधान की जो मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि सरकार को इसे पेश नहीं करना चाहिए। आरएसपी के एन. के. प्रेमचंद्रन ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि विधेयक को लाने का मुख्य मकसद परमाणु कार्यक्रम को निजी हाथों को सौंपना है। प्रोफेसर सौगत राय ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु आयोग का गठन किया था जिसके कारण देश परमाणु शक्ति बना है लेकिन अब सरकार निजी क्षेत्रों को इसमें शामिल कर गलत कदम उठा रही है।
संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि सदस्य बार बार विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के विरोध का कोई औचित्य समझ नहीं आता है। उनका कहना था कि परमाणु अधिनियम 1962 में इसी सदन में आया था और फिर डॉ मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी परमाणु विधेयक लाया गया था तो इस बार विधेयक को लाने का विरोध क्यों हो रहा है। अब परमाणु विधेयक लाने में विपक्ष को दिक्कत क्यों हो रही है। उनका कहना था कि विधेयक को नियमानुसार और परंपरा के अनुसार लाया जा सकता है और सदस्यों को इसका समर्थन करना चाहिए।
