नई दिल्ली। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में गहराते जा रहे आर्थिक संकट और मनरेगा को लेकर कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा मोदी सरकार पर लगाए गए आरोपों पर भाजपा की तरफ से पलटवार करते हुए पार्टी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने यह आरोप लगाया है कि कांग्रेस अध्यक्ष मनरेगा के बारे में मिथ्या प्रचार कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए एक्स पर पोस्ट कर कहा, “ग्रामीण भारत में आर्थिक संकट इतना गहरा है कि सितंबर में मनरेगा की डिमांड 4 वर्षों में 30 प्रतिशत बढ़ गई है। प्रधानमंत्री इस बारे में कुछ करने के बजाय अपनी विकराल विफलताओं को भाषण तले छिपाने के लिए, चुनावी राज्यों में कांग्रेस को कोस रहें हैं। बेतहाशा घटती घरेलू आमदनी और महंगाई की मार से करोड़ों लोग मनरेगा में काम की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
हालत ये है कि मनरेगा के बजट का केवल 4 प्रतिशत फंड ही बचा है। देश को याद है कि बजट 2023 में मोदी सरकार ने मनरेगा के बजट में 33 प्रतिशत कटौती की थी, जिसका परिणाम ग़रीब परिवार भुगत रहें हैं, विपक्ष शासित राज्यों का फंड भी बक़ाया है। कांग्रेस को जितना चाहे बुरा-भला कहिये, ग़रीबों का अधिकार मत छीनिए।”
खड़गे के इसी एक्स पर रिप्लाई करते हुए अमित मालवीय ने कहा, “आंकड़ों को झूठ में लपेटकर जनता के सामने पेश करने में कांग्रेस को महारथ हासिल हो चुकी है। मनरेगा के बारे में मिथ्या प्रचार व विलाप भी उसी का प्रदर्शन है। लेकिन, अच्छा होता कि कांग्रेस अध्यक्ष आरोप लगाने से पहले इस योजना को समझ लेते। शायद खड़गे, भूल गए कि मनरेगा एक मांग-आधारित योजना है, इसका मतलब है कि जब अधिक मांग होती है तो अधिक धन आवंटित किया जाता है।
कांग्रेस अध्यक्ष को मनरेगा में यूपीए का प्रदर्शन याद कर लेना चाहिए। यूपीए के शासन में 2006-07 से 2013-14 तक, 2,13,220 करोड़ रुपये की राशि से 1,660 करोड़ मानव-दिवस सृजित किए गए, और वे केवल 153 लाख कार्यों को पूरा करने में सफल रहे। इसके विपरीत, एनडीए के शासन में 2014-15 से 2022-23 तक, 2,341 करोड़ मानव-दिवस सृजित किए गए, 5,76,303 करोड़ रुपये जारी किए गए और इसके तहत 602 लाख कार्यों को पूरा किया गया।
इस तरह का बड़ा अंतर विपक्ष में खड़े होकर खोखली आलोचना करने वालों के लिए शर्मनाक होना चाहिए। 2023-24 में मनरेगा के लिए बजट में कटौती के बारे में भी उनका दावा झूठा है। मोदी सरकार ने बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अपने बजट अनुमानों को बार-बार संशोधित किया है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2021-22 में, जो 73,000 करोड़ रुपये के बजट एस्टिमेट- बीई के रूप में शुरू हुआ था, उसे 98,000 करोड़ रुपये तक संशोधित किया गया था।
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए, जो 61,500 करोड़ रुपये के बीई के रूप में शुरू हुआ था, उसे 1,11,500 करोड़ रुपये तक संशोधित किया गया था। शर्म की बात है कि दशकों तक तक राज करने के बाद भी कांग्रेस इस बात को समझ नहीं पाई। वित्त वर्ष 2022-23 में मोदी सरकार ने मनरेगा के अंतर्गत कुल मांग के सापेक्ष 99.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को मजदूरी रोज़गार देने का काम किया है।”
मालवीय ने आगे कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को तो यह पता ही होगा, “अगर अनुरोध के 15 दिनों के भीतर रोजगार नहीं दिया जाता है, तो व्यक्ति दैनिक बेरोजगारी भत्ता पाने का हकदार होता है। यह कांग्रेस की तरह ऐसी सरकार नहीं है जो “गरीबों के अधिकार छीन रही है”, बल्कि एक ऐसी सरकार है जो उनके अधिकारों को सुरक्षित कर रही है।”