राष्ट्र तभी उन्नति करता है और जनता सुखी रहती है, जब उसका शासक वीर, धीर और योग्य होता है। ऐसा शासक प्रजा की भलाई में सुख पाता है और उनके दुख-दर्द को दूर करने में तत्पर रहता है। वह खुद को प्रजा का सेवक मानता है, न कि उनका शासक।
लेकिन यदि शासक अयोग्य हो तो उसकी सरकार में जनता दुखी, त्रस्त और असुरक्षित रहती है। भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी जनता का धन लूटकर अपने लाभ के लिए उपयोग करते हैं। इससे राष्ट्र में अकाल, अन्न की कमी और सामाजिक कलह फैलती है। परिवारों में सद्भाव और सम्मान खत्म हो जाता है। लोग स्वार्थी बन जाते हैं, चोरी-डकैती, व्यभिचार और आतंक बढ़ जाते हैं। ऐसे माहौल में शत्रु राष्ट्र भी अवसर देखकर हम पर आक्रमण करते हैं।
ऐसे राष्ट्र में सत्य और विश्वास का पालन कठिन होता है। सहयोग की भावना समाप्त हो जाती है और जनता शासन को सम्मान नहीं देती। दूसरे राष्ट्र भी ऐसे देश का सम्मान नहीं करते और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
इसलिए, शासन ऐसा होना चाहिए, जिसमें अच्छे शासक के गुण हों। लेकिन याद रखिए, शासक वैसा ही होता है जैसा उसकी जनता। क्योंकि शासक का चुनाव प्रजा ही करती है।