जैसे दूर को पाने के लिए सर्वप्रथम निकट को ही पाना अनिवार्य है वैसे ही दूरवत परमात्मा को पाने के लिए निकटस्थ आत्मा को पाना परम अनिवार्य है। जैसे समस्त भविष्य वर्तमान के क्षणों में उपस्थित है, जैसे एक छोटे कदम में बड़ी से बड़ी मंजिल का आवास है, जैसे छत की अन्तिम सीढी पर पहुंचने के लिए आरम्भ की समस्त सीढियों को लांघना अनिवार्य है। वैसे ही परमात्मा के दर्शन चाहने वालों को आत्मा का दर्शन अनिवार्य है।
जैसे गुणों का निवास वर्षों में, वर्षों का निवास ऋतुओं में, ऋतुओं का निवास महीनों में, महीनों का निवास पक्ष तथा सप्ताहों में, सप्ताहों का निवास पलों में और पलों का निवास विपुलों में, वैसे ही परमात्मा का निवास आत्मा में है। आत्मा को पहचान ले, परमात्मा को पहचानने में देर नहीं लगेगी। परमात्मा की खोज में दौड लगाने वालों, कहीं ओर जाकर परमात्मा से मिलने की चाह वालों कहां भागे जा रहे हो, क्यों भागे जा रहे हो?
बिना परिणाम जाने अन्धी दौड में सम्मिलित हो रहे हो। परमात्मा रूपी पिता की गोद में स्थित जीवात्मा रूपी शिशु ज्यौ-ज्यौ परमात्मा की खोज में बाहर भटकेगा त्यौ त्यौ उससे दूर होता जायेगा। पाना है तो बाहर नहीं अपने भीतर ढूंढिये।