मनुष्य उसी की निंदा करता है और उसी से ईष्र्या करता है जो उससे आगे बढ रहा होता है। स्वार्थी प्रशंसा उसकी करता है, जिससे कुछ स्वार्थ होता है। याद अपनों की आती है बैगानों को कौन याद करता है। पुत्र, पुत्री, मित्र तथा अन्य निकट सम्बन्धियों, जिनसे सम्बन्ध टूटना अवश्यम्भावी है की याद अनायास आती रहती है, किन्तु जो सदा-सदा से ही अपना है और अपना रहेगा उस प्रभु की याद हमें तब आती है, जब हम संकट में हो अथवा हमारा कुछ स्वार्थ हो।
यही हमारी विडम्बना है। जैसे पक्षी को उडऩे के लिए दोनों पंखों की आवश्यकता होती है वैसे ही ईश्वर प्राप्ति के लिए नाम, जप और सेवा दोनों अनिवार्य है। इसलिए प्रभु स्मरण, नाम, जप तभी फलदायी होगा, जब सेवा परोपकार का कार्य भी चलता रहे।
मात्र तोता रटन्त को ही प्रभु भक्ति मान लेना आत्म प्रवंचना है। जो व्यक्ति संसार के भाग पदार्थों की प्राप्ति हेतु ही जागृत है। सांसारिक द्वन्द्वों में ही फंसा हुआ है, परन्तु परमात्मा की ओर से सोया हुआ है, वह जीवन का उद्देश्य कभी प्राप्त नहीं कर सकता। जीवन की बाजी तो वही जीत सकता है, जो परमात्मा की ओर से जाग गया है।