रावण का किया जाएगा श्राद्ध, लंकापति के मंदिर में होंगे तर्पण और पूजा, जानिए परंपरा की कहानी

जोधपुर (राजस्थान)। जब पूरे भारत में रावण का पुतला जलाया जाता है, वहीं राजस्थान के जोधपुर में लोग श्रद्धा के साथ रावण का श्राद्ध और तर्पण करते हैं। 16 सितंबर को पितृपक्ष की दशमी तिथि पर अमरनाथ मंदिर परिसर में रावण के वंशज माने जाने वाले दवे, गोधा और श्रीमाली समाज के लोग पिंडदान करेंगे।
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो रावण को सिर्फ राक्षस नहीं, बल्कि महान पंडित और विद्वान मानती है।
मान्यता है कि लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी का पीहर जोधपुर के मंडोर क्षेत्र में था।
इसी कारण जोधपुर को रावण का ससुराल माना जाता है।
यहां के दवे, गोधा और श्रीमाली समाज के लोग स्वयं को रावण का वंशज बताते हैं।
हर साल पितृपक्ष की दशमी पर ये लोग रावण की आत्मा की शांति के लिए पूजा, पिंडदान और तर्पण करते हैं।
रावण का मंदिर और डेढ़ टन की प्रतिमा
अमरनाथ मंदिर परिसर में स्थित रावण मंदिर की स्थापना 2007 में की गई थी।
यहां रावण की लगभग 6 फीट लंबी और डेढ़ टन वजनी प्रतिमा स्थापित है, जिसमें वह भगवान शिव की उपासना करते दिखाई देते हैं।
इस प्रतिमा के सामने खीर-पूरी का भोग अर्पित किया जाता है और विशेष आरती होती है।
मंदिर में मंदोदरी की मूर्ति भी स्थापित है।
विजयदशमी पर शोक, रावण दहन नहीं देखते वंशज
रावण के वंशज कहे जाने वाले परिवार दशहरे के दिन रावण दहन नहीं देखते।
वे सूतक मानते हैं, जनेऊ बदलते हैं, और शोक के तौर पर स्नान कर विशेष पूजा करते हैं।
पंडित अजय दवे ने बताया कि उनके पूर्वजों से यह परंपरा चली आ रही है कि वे रावण दहन नहीं देखते, केवल धुएं को देख कर वापस लौट आते हैं।