"रुको, सोचो और खुद से सवाल करो – जीवन की चाल कैसी है?"

थोड़ा रूकिये, ठहरिये, विचार कीजिए कि तुम्हारे जीवन की चाल कैसी है। इसका निष्पक्ष रूप से मूल्यांकन करो। जैसे दर्पण के सामने खड़े होकर अपने बिखरे बाल संवार लेते हो, चेहरे पर लगा दाग पोंछ लेते हो, कपड़ों पर लगी गन्दगी झाड लेते हो, इसी प्रकार अपने अन्तर्मन में झांककर अपनी अवस्था को भी सुन्दर रूप प्रदान करो।
यदि भावनाएं सुन्दर हो जाये तो फिर कदम विनाश के लिए नहीं कल्याण के लिए बढेंगे। फिर तन का भी सदुपयोग होगा और धन का भी सदुपयोग होगा। अज्ञानता के कारण इंसान परमात्मा के नाम पर भी एक दूसरे के साथ लड़-झगड़ रहे हैं, मारकाट कर रहे हैं। वह छोटे-छोटे बच्चों पर भी दया नहीं कर रहे हैं। झगड़े का कारण यह है कि हमने परमात्मा को सच में जाना नहीं अपनी-अपनी मान्यताओं, आस्थाओं को ही धर्म का नाम दे दिया है। धर्म के मर्म को जाना नहीं।
जीवन में यदि प्रेम नहीं, एक-दूसरे के प्रति घृणा है हेय दृष्टि है तो इंसान जीवित लाश है। केवल हृदय के घड़कने और श्वासों के चलने का अर्थ यह नहीं कि आदमी जीवित है। जरूरी है हम सबके विचार पवित्र हो, मन में प्रेम, करूणा, दया, मिलवर्तन वाले भाव हो। किसी में किसी के भी प्रति कटुता के भाव न हो। तभी हम स्वयं मनुष्य मानने के अधिकारी बन सकते हैं।