पंचायत चुनाव से सपा का किनारा: क्या अखिलेश की 'पीडीए' रणनीति के पीछे है कोई बड़ा दांव?

इटावा। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव के एक बयान ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। उन्होंने ऐलान किया है कि सपा 2026 के पंचायत चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी। यह बयान अखिलेश यादव की सहमति के बिना संभव नहीं माना जा रहा, जिससे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला किसी रणनीतिक योजना का हिस्सा हो सकता है।
अगर सपा वास्तव में पंचायत चुनाव से दूर रहती है, तो यह समझा जा सकता है कि पार्टी 2027 के विधानसभा चुनावों में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी कर रही है। अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 में 'पीडीए' (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फार्मूले पर बड़ा दांव खेला था, जिसने उन्हें भाजपा के खिलाफ कुछ हद तक बढ़त दिलाई। लेकिन उपचुनावों में भाजपा की वापसी और कुछ परंपरागत सपा सीटों पर हार ने इस फार्मूले की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए।
अब सपा शायद पंचायत चुनाव में भाग न लेकर अपनी रणनीति को "टेस्ट न करने" का विकल्प चुन रही है। इससे पार्टी जातीय समीकरणों को छेड़े बिना 2027 के लिए जमीन तैयार करना चाहती है।
पर्दे के पीछे 'साइलेंट खेल'?
हालांकि सपा सार्वजनिक रूप से चुनाव में हिस्सा नहीं लेने की बात कह रही है, लेकिन पार्टी समर्थित उम्मीदवार बिना सिंबल के चुनाव लड़ सकते हैं। इससे पार्टी जमीनी ताकत को परखेगी और कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखेगी। इससे गठबंधन की संभावनाओं पर भी नजर बनी रहेगी।
कांग्रेस को मिलेगा मौका?
अगर सपा नहीं लड़ती, तो कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा अवसर हो सकता है।
कांग्रेस लगातार कह रही है कि वह प्रदेश में अपने संगठन को मजबूत कर रही है। ऐसे में वह सभी पंचायत सीटों पर उम्मीदवार उतारकर अपनी ताकत दिखा सकती है, जिससे 2027 में सीटों के बंटवारे में उसे मोलभाव का अवसर मिल सकता है।
छोटे दलों के लिए भी मौका
सपा की अनुपस्थिति में छोटे दल, जो 2027 में सीटें मांगने की तैयारी में हैं, पंचायत चुनाव के माध्यम से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकते हैं। यह भाजपा के सहयोगी दलों के लिए भी बढ़िया मौका हो सकता है।
अखिलेश का 'बड़ा पैतरा'?
हालांकि अंतिम निर्णय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को ही लेना है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि अखिलेश अंत समय में कोई बड़ा मोड़ भी दे सकते हैं, जैसा वह पहले भी कर चुके हैं। इस घोषणा से पहले और बाद की गतिविधियों पर सभी राजनीतिक दलों की पैनी नजर रहेगी।