कानपुर, रवी प्याज की फसल अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक पद्धति से इसकी खेती करने से किसानों को अधिक लाभ होगा। प्याज में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाया जाता है। इसके अलावा इसमें एंटी एलर्जिक, एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी कार्सिनोजेनिक गुण भी होते हैं। यह जानकारी मंगलवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कल्याणपुर स्थित सब्जी अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर आर.बी. सिंह ने दी।
उन्होंने बताया कि प्याज में प्याज में भरपूर मात्रा में विटामिन ए, बी 6, बी कॉम्प्लेक्स और सी भी पाया जाता है। प्याज में आयरन, फोलेट और पोटैशियम जैसे खनिज भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। प्याज का प्रयोग मसालों तथा कच्चा सलाद में खाने के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्याज हृदय रोग एवं ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
रबी प्याज की नर्सरी के लिए सबसे उचित माह सितंबर और अक्टूबर
डॉ सिंह ने बताया कि रबी प्याज की नर्सरी सितंबर अक्टूबर के महीने में डाली जाती है। खेत को अच्छी तरह से तैयार कर क्यारियां बना लें। तथा एक हेक्टेयर के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
उन्होंने उन्नतशील प्याज की प्रजातियों के बारे में बताया कि सफेद प्याज हेतु भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता, पूसा सफेद आदि हैं जबकि लाल प्याज हेतु भीमा सुपर, भीमा रेड, नासिक रेड और अर्का कल्याण, अर्का लालिमा प्रमुख प्रजातियां हैं। नर्सरी में प्याज की पौध तैयार होने के उपरांत उसे खेत में रोपाई कर दें।
उन्होंने बताया कि खेत में पौध रोपाई के पूर्व पौधे की जड़ों को बावस्टीन दवा की 2 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी के घोल में 15 से 20 मिनट डुबोकर रोपाई कर दें ताकि बैंगनी धब्बा रोग से फसल को बचाया जा सके।