Tuesday, December 24, 2024

जाति के आधार पर कैदियों को काम देना असंवैधानिक है- सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने जाति के आधार पर कैदियों को काम आवंटित करने के नियम को असंवैधानिक करार देते हुए गुरुवार को कहा कि देश की किसी भी जेल में किसी भी तरह का जातिगत भेदभाव नहीं किया जा सकता।

 

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि जेल मैनुअल में इस तरह के भेदभाव को बढ़ावा देने वाले सभी मौजूदा प्रावधानों को खत्म किया जाना चाहिए।

 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पीठ की ओर से कहा, “केंद्र सरकार के जेल मैनुअल 2016 में खामियां हैं। इसमें जाति के आधार पर कैदियों के वर्गीकरण पर रोक लगाई जानी चाहिए। जातिगत पदानुक्रम के आधार पर कैदियों के बीच शारीरिक श्रम का वितरण भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।”

 

पीठ ने महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। उनकी याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति-आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं।

 

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंक आदि की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि ये प्रथाएं औपनिवेशिक काल की हैं और उनमें अधिकांश कानून ब्रिटिश शासन के दौरान बनाए गए थे।
पीठ ने कहा, “यदि अनुच्छेद 23 (मानव तस्करी और जबरन श्रम का निषेध) का उल्लंघन निजी व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है तो राज्य को उत्तरदायी ठहराया जाएगा। कैदियों से अमानवीय काम नहीं करवाया जा सकता और उनके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा जाति आधारित भेदभाव के प्रति घृणा, अवमानना ​​और ऐसी जातियों के प्रति व्यापक पूर्वाग्रह नहीं रखा जा सकता।”

 

पीठ ने जेलों के अंदर भेदभाव के कथित मामले में स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को (जेलों के अंदर भेदभाव के संबंध में) इस मामले को सुनवाई के लिए तीन माह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को (इस न्यायालय के समक्ष) इस निर्णय के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

 

सर्वोच्य न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि हाशिए पर पड़े लोगों को तकलीफ न हो।इस न्यायालय ने माना है कि संविधान एससी/एसटी को सुरक्षात्मक भेदभाव के लिए मान्यता देता है, लेकिन जाति का इस्तेमाल हाशिए पर पड़े लोगों के साथ भेदभाव करने के लिए नहीं किया जा सकता है और इससे उत्पीड़ितों के साथ भेदभाव जारी नहीं रहना चाहिए।

 

पीठ ने कहा, “कैदियों के बीच इस तरह का भेदभाव नहीं हो सकता और कैदियों के बीच अलगाव से पुनर्वास नहीं होगा।”
पीठ ने कहा कि समाज में हाशिए पर पडें लोगों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम और ऊंची जाति के लोगों को खाना पकाने का काम सौंपना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।

 

पीठ ने अपने आदेश में कहा, “ऐसे अप्रत्यक्ष वाक्यांशों का इस्तेमाल जो तथाकथित निचली जातियों को निशाना बनाते हैं, हमारे संवैधानिक ढांचे के भीतर नहीं किया जा सकता है। जेल मैन्युअल केवल इस तरह के भेदभाव की पुष्टि कर रही है।”
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश जेल मैन्युअल में प्रावधान है कि साधारण कारावास में जाने वाला व्यक्ति अपमानजनक और निम्नस्तरीय काम नहीं करेगा, जब तक कि उसकी जाति का इस्तेमाल ऐसे काम करने के लिए न किया गया हो।

 

पीठ ने कहा, “कोई भी समूह मैला ढोने वाले वर्ग के रूप में या नीच काम करने या न करने के लिए पैदा नहीं होता है। कौन खाना बना सकता है और कौन नहीं, यह छुआछूत के पहलू हैं, जिनकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”

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