सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के अनुच्छेद 200 रेफरेंस पर छठे दिन की सुनवाई पूरी की, अगली सुनवाई 3 सितंबर को

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर आज छठे दिन की सुनवाई पूरी कर ली। संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई 3 सितंबर को करेगा।

आज सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर सहमति में देरी के कुछ खास मौकों की छोड़कर राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए सहमति की टाइमलाइन तय करने के फैसले को सही नहीं ठहाराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कुछ खास मामलों में पीड़ित पक्ष राहत के लिए कोर्ट आ सकता है और उस परिस्थिति में टाइमलाइन की बात की जा सकती है।

आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपालों की ओर से जिस तरीके से सहमति देने में देरी के वाकये लगातार दोहराये जा रहे हैं वैसी स्थिति में सहमति के लिए टाइमलाइन तय करना जरुरी है। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों के लिए किया जा सकता है। जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि सामान्य रुप से टाइमलाइन तय करने का मतलब संविधान में संशोधन करना होगा, क्योंकि अनुच्छेद 200 और 201 में कोई टाइमलाइन का प्रावधान नहीं है।

सुनवाई के दौरान 28 अगस्त को तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि राज्यपाल किसी विधेयक की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता है, ये काम कोर्ट का है कि कोई विधेयक संविधान का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा था कि किसी विधेयक को रोककर रखना या विधानसभा को वापस करना अंतर्निहित हैं और राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा को वापस किए बिना उसे रोक नहीं सकते हैं। तब कोर्ट ने कहा था कि क्या राज्यपाल विधानसभा से दोबारा विधेयक भेजे जाने पर राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को रोके रख सकते हैं।

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि राष्ट्रपति केवल ये चाहती हैं कि क्या संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है। मेहता ने कहा था कि राज्य सरकार मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। ऐसे में राज्य सरकार अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग नहीं कर सकती है। मेहता ने कहा कि राज्य सरकार ये नहीं कह सकती है कि वो नागरिकों के अधिकारों की रक्षक है।

पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल अनिश्चित काल तक विधेयक को लंबित रखते हैं तो विधायिका मृतप्राय हो जाएगी। कोर्ट ने पूछा था कि तब क्या ऐसी स्थिति में भी कोर्ट शक्तिहीन है। संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर उच्चतम न्यायालय की सलाह लेने का अधिकार है।

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