अगस्त का महीना हम हिंदुस्तानियों के लिए बहुत खास होता है, क्यों? इसी माह की 15 तारीख को हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। अक्सर कहा जाता है कि नई पीढ़ी स्वतंत्रता दिवस के दिन वैसा उत्सव नहीं मनाती जैसा पहले मनाया जाता था। यह सच है।
हम जब छोटे थे तो आजादी नई-नई आई थी। बहुत से ऐसे लोग उस समय हमारे बीच थे जो जंग-ए-आजादी में शरीक हुए थे। उन्हें उस दिन सम्मानित किया जाता था। हम बच्चे सड़कों पर मार्च पास्ट करते थे। देशभक्ति के गीत गाते थे और हर स्कूल में उस दिन मिठाई बंटती थी। सिर्फ 15 अगस्त ही नहीं, 26 जनवरी और 2 अक्तूबर को भी त्योहार का सा माहौल हुआ करता था।
आजाद भारत की सालगिरह के मौके पर मन में कई भावुक सवाल उमड़-घुमड़ करते हैं। हम जब बच्चे थे तो हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस का अर्थ अपने उन महान पुरखों को याद करना होता था जिन्होंने जंग-ए-आजादी में सब कुछ गंवा दिया था। ऐसा लगता था जैसे उन लोगों ने हमारे कंधों पर एक बड़ी जिम्मेेदारी डाल दी है जिसे हमें हर हाल में आगे बढ़ाना है।
हिंदुस्तानियों ने साबित कर दिया है कि वे न केवल आजादी पाने के काबिल थे बल्कि एक स्वतंत्र लोकतंत्र के रूप में भारत ने कई मिसालें कायम की हैं।
हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में लोकतंत्र पर सेना का शिकंजा कसता रहा है पर हिंदुस्तानी हर तरह से लोकतांत्रिक साबित हुए हैं। यह सब उन दो पीढिय़ों का कमाल है जो आजादी के समय या बाद में जन्मीं। स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर यदि सड़कों पर पहले जैसी रौनक नहीं दिखती तो उससे आतंकित होने की जरूरत नहीं है।
आज हम समूचे आत्मविश्वास से कह सकते हैं कि भारत के लोगों ने स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए, जब जैसी जरूरत पड़ी, किया। इस दौरान चीन और पाकिस्तान से हमारी खूनी लड़ाइयां हुईं।
सैंकड़ों जवानों ने जान गंवा दी पर दुश्मन को देश की प्रभुसत्ता से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी। यही नहीं, आतंकवादियों और अलगाववादियों से लड़ते हुए पुलिस और अर्धसैनिक बलों के हजारों सिपाही इस दौरान शहीद हुए हैं।
देशभक्ति एक ऐसा जज्बा है जो हमारी रगों में खून के साथ बहता है।
लगातार होते विकास और पूरी दुनिया में सफल होते भारतीय मूल के लोगों ने हर क्षेत्र में अपने झंडे गाड़े हैं। मतलब साफ है। जिन लोगों ने स्वतंत्रता के युद्ध में शरीक हो कर उसे सफल बनाया था, उनके बच्चों ने उनके जज्बे को हर तरह से आगे बढ़ाया।
यह चिंता की बात है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक खूबसूरत और प्रगतिशील दुनिया तभी बन सकती है, जब हर तरह की दहशत को हम अलविदा कह सकें। भारत की मौजूदा पीढ़ी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह आतंकवाद, अलगाववाद और आर्थिक विषमता को इस देश से दूर भगाने का संकल्प ले। एक बेहतरीन समाज के बिना आजाद और संपन्न देश की कल्पना तक नहीं की जा सकती।
मसलन, हम जब बच्चे थे, तब छुआछूत एक बड़ी समस्या थी। पिछले चार दशकों में इस पर काफी कुछ काबू पाया जा चुका है पर अभी बड़ी लड़ाई बाकी है। हमारे यहां अभी दलितों और आदिवासियों से कभी-कभी अमानवीय व्यवहार किया जाता है। दहेज हत्या और कन्याओं को गर्भ में मार देने का बर्बर सिलसिला जारी है।
वह देश कैसे आगे बढ़ सकता है, जो अपनी संतानों को खुली हवा में सांस लेने का मौका न देता हो? आज जब सारी दुनिया की नजर हम हिंदुस्तानियों पर है तो हमारे बच्चों की जिम्मेदारी कुछ बढ़ जाती है। तो क्यों न हम इस स्वतंत्रता दिवस को कसम खाएं कि जो भी करेेंगे, उसमें अपने देश और समाज की प्रगति का भाव जरूर रहेगा। कुरीतियों से जीवन भर लड़ेंगे।
यह तय है कि हमारे पूर्वजों ने स्मरणीय काम किया है और यह भी सच है कि यदि हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनके आदर्शों को हमें आगे बढ़ाना होगा। जिस तरह हमारे सुधारने से युग सुधरता है, उसी तरह से हमारी सोच से हमारे देश को भी बल मिलता है।
– नरेंद्र देवांगन