बाली उमरिया तो कन्याएं देखने दिखाने में ही निकल गई । कोई मंगलीक तो कोई हमको पसंद नहीं तो किसी को हम पसंद नहीं। और जैसे ही 40 वां लगा तो सारे कुनबे में आपातकाल छा गया कि अब खानदान का आगे क्या होगा? बरेेली वाले फूफा अपने पंडित के पास हमारा टेवा लेकर दौड़े तो वे हमारी जन्मपत्री उनके मुंह पर फटाक से मारतेे हुए बरसे, ‘सलमान खान की पत्री दिखा कर मेरा इम्तिहान लेेना चाहता है, बेवकूफ समझता है ? पूछता है इसकी शादी कब होगी?
तब से फूफा जी और हमारे खानदान की बातचीत बंद है। इधर 44 पार्टियां ‘मोदी हटाओ कैंपेन में व्यस्त थीं तो हमारे परिवार के 144 सदस्य ‘मुंडा ब्याहो अभियान में बिजी हो गए। रिश्ते ही रिश्ते विशेषज्ञों, शादी डॉट कॉम, मैरिज ब्यूरो आदि की परिक्रमा के असफल परिणामों के बाद एक दिन अंतत: सब एक मशहूर बाबा के डेरे में ‘मस्ट मैरी टुडे का संकल्प लिए धरना देकर बैठ गए।
बाबा जी मैरिज स्पेशलिस्ट थे। भजन-कीर्तन फिल्मी तर्ज पर चल रहा था। बाबा जी भी स्टेज पर कई बालाओं के साथ ठुमके लगा रहे थे और भक्तजन भी उनके डांस स्टेेप से स्टेप मिला रहे थे । प्रवचन के तत्काल बाद उनके सेवादारों ने 20-25 प्रत्याशियों को पगड़ी व शेरवानी, लंहगों- साडिय़ों से सुसज्जित किया और वरमालाएं डलवा दीं। हमें और परिवार को आशीर्वाद दिया। हमारे परिवार ने उनका आभार प्रकट किया और उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना की। अब पता चला है कि ऐसे महान बाबा को एक अदालत ने लंबे भेज दिया है।
दो दिन बाद पत्नी ने प्रात: चार बजे बांग लगाई । खटपट करती रही। हमने घबराकर पूछा क्या कर रही हो? वह चिल्लाई, ‘तुहाड ही स्यापा कर रही आं। मलूम नईं अज करवा चौथ है। यह जानकर कि यदि इसकी दुआ कबूल हो गई तो कम से कम सात जन्म केे लपेटे में गरीब बंदा आ सकता है। बाबा तो जैसे तैसे उम्रकेैद काटकर निपट जाएगाा पर अपन का क्या होगा। यह सब सोच कर सुबह सुबह चक्कर आने लगा। जब होश आया तो समझ आया कि हम पूरी तरह ऐक्सीडेंटल हस्बैंड बन चुके हैं।
एकसीडेंटल प्राइम मिनिस्टर की तो सभी चिंता कर रहे थे परंतु एक्सीडेंटल पति की सुनने वाला कोई नहीं था। जिनसे इस दुर्घटना की अपील करनी थी वो खुद सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील किए लटके पड़े थे। राजनीतिक गठबंधन तो कभी भी जोड़ा जा सकता है या तोड़ा जा सकता है परंतु ऐसे गठबंधन को कोर्ट से भी तुड़वाना हो तो पति का सब कुछ उतर जाता है। प्रधानमंत्री मौन रह कर भी 10 साल देश चला सकता है पर बीवी को 10 मिनट तक भी नहीं चलाया जा सकता। पॉलिटिक्स में एक एक्सीडेंट पी.एम बना सकता है पर विवाह में दुर्घटनाग्रस्त होकर बंदा बंदा ही नहीं रह पाता। घुग्गू बन जाता है।
इमरजेंसी आने पर सहयोगी पार्टियां साथ देती हैं, यहां तो ससुराल वालों सहित वो लोग भी मोबाइल में आपका नंबर ही ब्लॉक कर देते हैं जिन्होंने दारू की छबील लगाई होती है या भंगड़े पा पा के धूम मचाई होती है। भइया अब तुम जानो तुम्हारा काम जाने। तुम्हारी है , तुम संभालो।
बाबा तक कननी काट जाते हैं कि अगर बीवी संभालने का कोई नुस्खा होता तो बच्चा मैं बाबा बनता ? इमरजेंसी में एक डाक्टर के यहां गए तो वह बोला कि अगर इस मर्ज की कोई दवा होती तो मैं क्या संडे को अपने क्लीनिक में बैठा होता। देश के कई कुंवारे नेता और नेत्रियां , यदि घर चला पाते तो मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की दौड़ में क्यों भागते फिरते ?
पी. एम अपने मन का दर्द 135 करोड़ जनता को हर महीने सुना सकता है, यहां गरीब बंदा खुद को भी सुनाने लायक नहीं रहता। कभी खुद पे कभी हालात पे रोना भी आए तो न गा सकता है, न रो सकता है। न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न राईट टू नो का प्रावधान। राजनीति में एक्सपेरीमेंटल नेता हो सकता है पर घर में ‘वंस एक्सीडेंटल – ऑलवेज एक्सीडेंटल। बात बात में दुर्घटना ग्रस्त। माथे पर एंबुलेंस की गाड़ी पर लगी नीली बत्ती की तरह एक गुलम्मा दूर से ही तेरी रात का फसाना कुछ सुनाता …कुछ बयां करता दिखता रहता है।
मदन गुप्ता सपाटू – विभूति फीचर्स