Friday, November 8, 2024

भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है धर्म-धम्म की अवधारणा: मुर्मू

भोपाल- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज कहा कि मानवता के दुख के कारण का बोध कराना और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्व के मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है।

श्रीमती मुर्मू यहां के कुशाभाऊ ठाकरे हाल में सातवें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन कर रही थी। कार्यक्रम में राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर के अतिरिक्त लगभग 15 देशों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वह धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है। राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करूणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज व्यवस्था पूर्व के मानववाद का ही व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित इस व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत करना हर व्यक्ति का कर्त्तव्य माना गया है।

उन्होंने कहा कि धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ की प्रार्थना हमारे जीवन का हिस्सा रही है। यही पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है और आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। यह सम्मेलन मानवता की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में सार्थक प्रयास है। यही कामना है कि समस्त विश्व समुदाय पूर्व के मानववाद से लाभान्वित हो।

श्रीमती मुर्मू ने धर्म-धम्म सम्मेलन के लिए राज्य सरकार साँची विश्वविद्यालय और इंडिया फाउंडेशन की सराहना की। उन्होंने कुशाभऊ ठाकरे का स्मरण करते हुए कहा कि इस सभागार को कुशाभाऊ ठाकरे का नाम दिया गया है। जन-सेवा के कार्य में धर्म-धम्म के आदर्शों के अनुरूप नि:स्वार्थ और संपूर्ण समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले श्री ठाकरे का स्मरण सभी को नैतिकता, धर्म और सेवाभाव से जोड़ता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की परंपरा में समाज व्यवस्था और राजनैतिक कार्य-कलापों में प्राचीन काल से ही धर्म को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों से यह स्पष्टत: प्रदर्शित होता है। अंतर्ऱाष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो धर्म-धम्म के विचार की वैश्विक अपील का प्रतीक है।

राज्यपाल श्री पटेल ने कहा है कि हमारे भारतीय दर्शन की मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है। युद्ध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा विश्व शांति और मानव जाति के कल्याण में विश्वास रखती है और उसे बढ़ावा देती है।

उन्होंने कहा कि नैतिक और व्यवहारिक क्षेत्र में बौद्ध दृष्टिकोण भी मानव जाति की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। समृद्ध समाज, राष्ट्र एवं विश्व निर्माण के लिए भारतीय सांस्कृतिक और सभ्यतागत अंतर्संबंधों की सदियों से चली आ रही चिंतन परम्परा पर बदलते समय और परिप्रेक्ष्य में नई दृष्टि से विचार समय की ज़रूरत है। वैश्विक परिदृश्य में अतिवाद, विस्तारवाद, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मानवता को बचाने के मार्ग भारतीय ज्ञान एवं ऋषियों के चिन्तन में ही मिलेंगे।

राज्यपाल ने कहा कि धर्म-धम्म चिंतन से प्राचीन सभ्यताओं के बीच विचारों के परस्पर विनिमय से सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा। हिंसा और युद्ध से कराहते विश्व के लिए बुद्ध एक समाधान हैं।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि साँची विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश के लिए सौभाग्य का विषय है। यहाँ भारतीय ज्ञान और बौद्ध दर्शन के अध्ययन के अवसर सृजित होंगे। पूर्व के मानववाद का मूल चिंतन है कि एक ही चेतना समस्त जड़ और चेतन में विद्वान हैं, सारी धरती एक ही परिवार है। हमारे यहाँ जिओ और जीने दो और ‘धर्म की जय हो-अर्धम का नाश हो-प्राणियों में सद्भाव हो और विश्व का कल्याण हो’ का विचार सर्वत्र व्याप्त है। भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षियों, नदियों, वृक्षों और पहाड़ों को भी पूजा गया है। दशावतार की अवधारणा में यह स्पष्टत: परिलक्षित होता है। भारतीय परंपरा में सारी धरती को एक परिवार माना गया है।

श्री चौहान ने कहा कि धर्म और धम्म का पहला सिद्धांत है सभी जीवों के साथ दया और सम्मान का व्यवहार हो, दूसरे सिद्धांत में ज्ञान और बोध पर बल दिया गया है, तीसरे सिद्धांत में आंतरिक शांति और निर्विकार भाव विकसित करने की आवश्यकता निरूपित की गई है। यह विद्वानों की सभा है, सम्मेलन में अलग-अलग विषयों पर गंभीर चिंतन होगा। चिंतन से जो निष्कर्ष निकलेंगे वह विश्व को शाश्वत शांति के पथ पर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होंगे।

उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध ने युद्ध नहीं शांति, घृणा नहीं प्रेम, संघर्ष नहीं समन्वय, शत्रुता नहीं मित्रता को जीवन में आवश्यक माना है। यही वह मार्ग है जो भौतिकता की अग्नि में दग्ध मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन करायेगा। अत: निश्चित ही धम्म-धर्म सम्मेलन विश्व के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

राम-जन्म-भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज ने कहा कि भारत भूमि, प्रकाश, ज्ञान और सीखने की भूमि है। हम किसी पर आक्रांता नहीं हुए, हमने सभी विचारों और विश्वासों का स्वागत किया है। धम्म और धर्म भविष्य के विश्व की आशा के केन्द्र हैं। यहाँ से निकला प्रकाश मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। प्रारंभ में साँची विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता ने सम्मेलन के उद्देश्य और आगामी कार्यक्रमों के संबंध में जानकारी दी।

राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने राज्यपाल श्री पटेल, मुख्यमंत्री श्री चौहान की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन किया। पुलिस बैंड द्वारा राष्ट्र-गान की धुन का वादन किया गया। साँची विश्वविद्यालय के गीत की विजुअल प्रस्तुति भी हुई। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु को मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अंगवस्त्रम्, प्रतीक-चिन्ह शंकराचार्य जी का चित्र और एकात्म धाम पर केन्द्रित पुस्तक भेंट की। राज्यपाल को आर्गेनाइजिंग कमेटी के को-चेयर प्रो. एस.आर. भट्ट ने प्रतीक-चिन्ह तथा अंगवस्त्रम् भेंट किया। श्री चौहान को साँची बौद्ध विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता द्वारा प्रतीक-चिन्ह भेंट किया गया।

राष्ट्रपति ने प्रो. एस.आर.भट्ट द्वारा लिखित पुस्तक ‘द पेनारोमा ऑफ इण्डियन फिलॉस्फर्स एण्ड थिंकर्स’ का विमोचन किया। कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में ‘नए युग में मानववाद का सिद्धांत’ विषय पर हुए सम्मेलन में 5 देशों के मंत्री, 15 देशों के विद्वान, चिंतक और शोधार्थी सम्मिलित हो रहे हैं। धर्म-धम्म के वैश्विक विचारों को एक मंच प्रदान करने वाला यह सम्मेलन 5 मार्च तक चलेगा।

कार्यक्रम में प्रदेश की संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर, भूटान के गृह और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री उगेन दोरजी, श्रीलंका के संस्कृति औऱ धार्मिक मामलों के मंत्री विदुर विक्रमनायके, श्रीलंका के प्रो. राहुल अनुनायक थेरा, इंडोनेशिया के उप राज्यपाल प्रो. डॉ. आईआर तोजोकोर्डो ओका अर्थ अरदाना सुकवती उपस्थित थे। पाँच मार्च तक चलने वाले 7वें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों में सांस्कृतिक सामंजस्य और अन्य विषयों पर चर्चा के लिए भारत सहित इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल और भूटान के संस्कृति मंत्री भाग ले रहे हैं। सम्मेलन में ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, मॉरीशस, दक्षिण कोरिया, नेपाल, वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मंगोलिया और भूटान के विद्वान और शोधार्थी भी सहभागिता कर रहे हैं।

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