‘धर्म परिवर्तन के बाद SC का दर्जा रखना संविधान से धोखाधड़ी', इलाहाबाद ने हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए उत्तर प्रदेश की संपूर्ण प्रशासनिक मशीनरी को व्यापक निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि जो लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं, वे अनुसूचित जाति (एससी) के लिए निर्धारित लाभ प्राप्त करना जारी न रखें। कोर्ट ने इसे "संविधान के साथ धोखाधड़ी" करार दिया है और इसे रोकने के लिए राज्य के सभी जिला मजिस्ट्रेटों (DM) को चार महीने के भीतर कानून के अनुसार कार्य करने का सख्त निर्देश दिया है।
हलफनामे में हिंदू, जांच में पादरी निकला याची
याची साहनी के वकील ने तर्क दिया था कि साहनी ने केवल अपनी भूमि पर ईसा मसीह के वचनों का प्रचार करने की अनुमति माँगी थी और उन्हें झूठा फँसाया जा रहा है। हालाँकि, न्यायालय ने पाया कि याची ने अपने आवेदन के समर्थन में दायर हलफनामे में अपना धर्म 'हिंदू' बताया था, जबकि पुलिस जांच में इसके विपरीत तस्वीर सामने आई।
गवाहों ने गवाही दी थी कि साहनी, जो मूल रूप से केवट समुदाय से आते हैं, ने ईसाई धर्म अपना लिया था और पादरी के रूप में कार्य कर रहे थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि साहनी ने गरीब लोगों को प्रलोभन देकर हिंदू धर्म के लोगों को ईसाई बनाने की कोशिश की। गवाहों ने बताया कि साहनी ने यह दावा करके हिंदू मान्यताओं का उपहास किया कि जातिगत पदानुक्रम के कारण इसमें कोई सम्मान नहीं मिलता, जबकि ईसाई धर्म अपनाने से नौकरियाँ मिलेंगी और वित्तीय लाभ होगा।
आरक्षण नीतियों के विपरीत है लाभ लेना
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति गिरि ने कहा कि आदेश के पैराग्राफ 3 के तहत, कोई भी व्यक्ति जो हिंदू धर्म, सिख धर्म या बौद्ध धर्म से अलग धर्म मानता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का भी जिक्र किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा था कि केवल लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखाधड़ी और आरक्षण नीतियों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
प्रशासन को चार महीने का अल्टीमेटम
न्यायालय ने इस संबंध में कैबिनेट सचिव (भारत सरकार) और मुख्य सचिव (उत्तर प्रदेश सरकार) को निर्देश दिया कि वे अनुसूचित जातियों के मामले और कानून के प्रावधानों पर गौर करें। इसके अलावा, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को भी अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति के दर्जे के अंतर को सख्ती से लागू करने के लिए उचित कार्रवाई करने को कहा गया है।
सबसे महत्वपूर्ण निर्देश में, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य के सभी जिलाधिकारियों (DMs) को चार महीने के भीतर कानून के अनुसार कार्य करने और 'संविधान के साथ धोखाधड़ी' को रोकने के लिए अपनी कार्रवाई की सूचना मुख्य सचिव को देने का सख्त आदेश दिया है।
याची पर होगी जालसाजी की कार्रवाई
याची साहनी के संबंध में, न्यायालय ने उनके भ्रामक हलफनामे को गंभीरता से लिया और महाराजगंज के डीएम को तीन महीने के भीतर उनके धर्म की जांच करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि साहनी को जालसाजी का दोषी पाया जाता है (ईसाई पादरी होते हुए भी खुद को हिंदू बताना), तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। अंततः, हाईकोर्ट ने साहनी की अर्जी खारिज कर दी।
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