भविष्य को शुभ बनाने के लिए मानव में शुभाकांक्षाओं के होने का अपना विशेष महत्व है। व्यक्ति जो भी करे, जिस प्रकार से भी करे वह अपने प्रति शुभ भावनाओं से ही करे। उत्कर्ष के भावों से भरा रहे। पुरूषार्थ में पवित्रता के साथ-साथ चिंतन शीलता और कल्पना शीलता भी हो तो भविष्य सहज ही शुभ एवं कल्याण भय हो सकता है, जो व्यक्ति कल्पना शील होगा उसकी आंखों में भविष्य के सतरंगे सपने तैरते रहेंगे और ये सपने उसकी दूर दृष्टि और पुरूषार्थ से जब पूरे होंगे तो मानो उसका भविष्य संवर गया। वर्तमान के सुख-दुख को समभाव से सहन करने में बहुत बड़ा सहारा बनता है उज्जवल भविष्य का सपना। वर्तमान में जो कुछ है वहीं यथार्थ हो तो व्यक्ति त्याग, तपस्या, साधना और ईश्वर आराधना क्यों करेगा? वर्तमान के सापेक्ष भविष्य की उज्जवल सम्भावनाओं के सहारे व्यक्ति क्रियाशील रहता है, उसमें उज्जवलता लाने को प्रयासरत रहता है अन्यथा वह निष्क्रिय और निकम्मा हो जाये और संसार की प्रगति और विकास को विराम लग जायें।