समस्त ब्रह्मांड जो दृश्य है और जो अदृश्य है वह सब परमपिता परमात्मा की रचना है। संसार के सभी जीव चाहे वे किसी भी देश महाद्वीप के हों, उनकी भाषा उनका पहनावा कैसा भी हो, सभी तो एक ईश्वर की संतान हैं।
हमारे शास्त्र कहते हैं ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ अर्थात पूरी वसुधा ही एक परिवार है, परन्तु इस सच्चाई को भूल जाने के कारण आज पूरे संसार में एकत्व का भाव नजर नहीं आ रहा है। इसीलिए चारों ओर बिखराव है, झगड़े हैं, विवाद है। इंसान इंसान से, देश देश से, नेता नेताओं से टकरा रहे हैं। दिन-प्रतिदिन परिस्थितियां भयावह होती जा रही है, शान्ति दुर्लभ हो रही है, लोगों में बैचेनी बढ़ रही है। आदमी आदमी को समाप्त करने पर तुला है, देश देश को समाप्त करने पर आमदा है।
हिंसक प्रवृतियां इतना सिर उठा चुकी है कि आदमी जबान से भी जहर उगलता है और हाथों से भी जुल्म करता है। छोटी-छोटी बातों पर ही दूसरे के प्राण ले लेता है।
अन्तत: तो हमें यह बात समझनी होगी कि हम सब भाई-भाई होते हुए भी क्यों एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। बिना यह समझे शान्ति की आशा करना बेमानी होगी।