धन भी कमाओ, किन्तु केवल धन ही न कमाओ। धन के साथ-साथ धर्म भी कमाओ, क्योंकि धन लोक में काम देगा और धर्म लोक और परलोक दोनों में काम देगा।
अनेक जन्मों की बिगड़ी आज अभी बन सकती है, किन्तु यदि अब भी बिगड़ गई तो आगे बनने की आशा ही क्या है। जीवात्मा के दो सच्चे साथी हैं। एक अपना किया हुआ कर्म तथा दूसरा परमात्मा। शेष तो सब यही मिले हैं और यही बिछुड़ जायेंगे।
इस बात पर विशेष ध्यान मत दो कि उसने हमारे साथ क्या किया है, विशेष ध्यान तो इस बात पर दो कि हमें उसके साथ क्या करना चाहिए। इस बात पर विशेष विचार न करो कि उसका हमारे प्रति क्या कर्तव्य था अथवा क्या कर्तव्य वर्तमान में है, किन्तु विचार तो इस बात का करो कि हमारा उसके प्रति क्या कर्तव्य है?
जीवन हर क्षण काल के गाल में प्रवेश करता जा रहा है। क्या पता कब कौन सा श्वास इसका अंतिम श्वास हो? इसलिए कर्तव्य पालन में प्रमाद मत करो।
जब मनुष्य भी छल-कपट से की हुई बातों को समझ जाता है, तो क्या ईश्वर छल-कपट से की हुई पूजा आरती आदि को नहीं जानता और आप द्वारा किये गये अनैतिक कार्यों को नहीं देखता?