देवनामग्रत: कृत्वा घोर प्राणि बधंनर: ये भक्षयति मांस च ते प्रजन्त्या धम् गतिम्।। शास्त्र की आज्ञा है कि जो मनुष्य देवी-देवताओं के मंदिर में मूर्ति के सम्मुख देवताओं अथवा परमात्मा के सामने कहीं भी किसी पशु को काटते हैं और प्रसाद के नाम से उसका मांस भक्षण करते हैं, वह नीच पुरूष अधोगति को प्राप्त होते हैं और उन जीवों को उतनी बार पशु योनि लेकर अपना मांस खिलाना पड़ेगा कि जितने उस पशु के शरीर पर बाल होते हैं।
पशु हत्यारों को आठ श्रेणी में परिभाषित किया गया है। मांस खाने या वध करने की सम्मति देने वाला, मांस का मूल्य देने वाला, वध करने वाला, मांस बेचने वाला, मांस खरीदने वाला, मांस पकाकर खिलाने वाला, मांस खाते हुए के साथ बैठकर खाने वाला, स्वयं मांस खाने वाला। ये आठ प्रकार के हिंसक (हत्यारे) माने गये हैं।
याद रखें पशु को मारकर जो अपने स्वाद की तृष्णा को पूरी करने में लगे हैं उस मृतक पशु की दुख भरी आह उनके सारे सुखों को छिन्न-भिन्न कर डालेगी, क्योंकि पशु शरीरधारी जीवो का भी स्वामी वही परमपिता परमेश्वर है, जिसके नाम की वे पूजा करते हैं।