आज महर्षि बाल्मीकि जयंती है। बाल्मीकि क्रौच पक्षी का वध करने वाले को शाप देकर ही निवृत नहीं हुए। उन्होंने उस क्षण में ही युगों, शतियों और सम्भवत: इस संसार में मनुष्य की सत्ता रहने तक के लिए स्वयं को अमर कर लिया, क्योंकि उन्होंने राम को काव्य में रचा।
वे कुछ अन्यतम रचना चाहते थे, परन्तु उनके समक्ष ऐसा कोई पात्र नहीं था। प्रभु की प्रेरणा से उन्हें रघुकुल शिरोमणि राम का नाम सूझा और इस प्रकार बाल्मीकि आदि कवि हो गये। लोक में बाल्मीकि के राम की प्रचारित छवि ऐसे है कि वे हमारे जीवन में एक काल अवधि तक राजा के रूप में ही प्रतिष्ठित रहे।
ऐसे राम जो प्रश्रों के घेरे में रहे। वे तो तुलसी के राम थे, जो मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये, परन्तु यह सत्य नहीं है। तुलसी से लेकर कंब, कृतिवास और कुर्वेपु आदि अपने-अपने राम को रचते हुए स्रोत कहां से पाते हैं? वे बाल्मीकि नहीं तो और कौन है? सत्य यह है कि बाल्मीकि ही है, जिन्होंने पुरूषोत्तम राम को उनके वास्तविक रूप में प्रतिष्ठित किया।
राम के राज्याभिषेक की तैयारियों में अयोध्या जुटी है, अयोध्यावासी मुदित है, परन्तु राम शान्त हैं। अचानक दशरथ से बुलावा आता है। दशरथ कुछ बोल नहीं पाते। कैकेयी सारा वृतान्त सुनाती है। चारों ओर छिटकी पूर्णिमा क्षण भर में अमा में ढल जाती है, परन्तु राम अविचलित, अचंचल स्थित प्रज्ञ योगी की भांति। इसके बाद का पूरा प्रसंग ही उनके मर्यादा पुरूषोत्तम होने का प्रमाण है। बाल्मीकि के इन्हीं राम से प्रेरणा लेकर ही अन्य रामायणों की रचना हुई। इनका स्रोत महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण ही है।बाल्मीकि जी को सादर नमन !