लखनऊ। रामनगरी अयोध्या से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है वह स्थान जिसे नंदीग्राम कहा जाता है। इस स्थान पर ही भरत ने 14 सालों तक तप किया जब राम, लक्ष्मण और सीता वनवास में थे। इसी स्थान पर भरत और हनुमान का मिलन हुआ। जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा और संजीवनी बूटी लेकर हनुमान जी लंका जा रहे थे। जब भरत ने उन्हें शत्रु समझ कर बाण मार दिया था। नंद्रीग्राम को ही भरतकुंड के नाम से भी जाना जाता है।
त्रेता युगकालीन इस स्थान का उदाहरण तुलसीदास कृत रामायण, वाल्मीकि रामायण सहित विभिन्न धर्मग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण में 115वें सर्ग के दूसरे श्लोक में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है कि नन्दीग्रामं गमिष्यति मातृश्ता सर्वानामंत्रयेउत्र। तत्र दु:खमिदं सर्वम सहिष्ये राघवं बिना। भरत कहते हैं कि अब मैं नन्दीग्राम जाउंगा। इसके लिए आप सब की आज्ञा चाहता हूं। मैं वहीं श्रीराम के बिना प्राप्त होने वाले सभी दुख सहन करुंगा।
वाल्मीकि रामायण में आगे लिखा है कि उन्होंने माताओं और कुलपुरोहित वशिष्ठ से आज्ञा लेकर नन्दीग्राम की ओर प्रस्थान कर दिया। इसके उपरांत भरत ने स्वयं तपस्वी का वेष धारण कर लिया और उसी वेष में अयोध्या पर शासन करने लगे। नंदीग्राम में कुटिया डालकर वे तपस्या करने लगे। उन्होंने जटाएं धारण की और मुनि वेष धारण कर नन्दीग्राम में निवास करने लगे। अयोध्या के हनुमत निकेतन के महंत मैथिली शरण नंदिनी जी कहते हैं कि 14 सालों तक चारों भाईयों ने अपने बाल नहीं कटवाए। जब भगवान राम वनवास समाप्त कर अयोध्या आए तो फिर चारों भाईयों ने अपना मुंंडन कराया।
इस स्थान पर हनुमान-भरत मिलन स्थल, सैकड़ों वर्ष पुराना बरगद का पेड़ आस्था के केंद्र बिंदु हैं। भरत जिस कुंड में स्नान करते थे उसे अब विकसित करके सरोवर का निर्माण किया गया है। नन्दीग्राम के पास ही करीब चार किलोमीटर पर वह स्थान है जिसे पहुंपी कहा जाता है। वास्तव में पहुंचने से इसका तात्पर्य है और माना जाता है कि लंका से वापस आने पर भगवान श्रीराम यहीं पर उतरे थे।
अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम के अनुसार अयोध्या के करीब-करीब सभी मन्दिर अपनी-अपनी सुन्दरता में बेजोड़ हैं। चाहे वह त्रेतायुगीन नाग नागेश्वर नाथ महादेव का मंदिर हो या नंदीग्राम अथवा देवकाली मंदिर। कनिंघम अपने यात्रा वृतांत में लिखता है कि अयोध्या का सात शिखरों वाला नागेश्वर मन्दिर, जो सुनहरे मन्दिर के नाम से विख्यात था। कहा जाता है कि इस मन्दिर के सात कलशों पर 72 मन सोना चढ़ाया गया था। जिसे कालांतर में हूण और किरातों ने अपने हमलों के बाद तहस नहस किया और स्वर्ण को लूट लिया। जिसके बाद आज तक नाग नागेश्वर महादेव के शिखरों पर सोना नहीं चढ़ाया जा सका। बाद मेंं पाटलीपुत्र के राजा बृहद्बल की हत्या करके उसके सेनापति पुष्यमित्र ने कोसल की राजधानी अयोध्या की ओर कूच किया था। जिससे हूण राजा कामान्दार पुष्यमित्र के हाथों मारा गया। उसकी फौज का एक भी आदमी जीवित नहीं बचा, जो लौटकर बर्बर हूणों को खबर दे सकें कि सभी हूण मारे गए।