बरसाना। होली के रंगों से सराबोर बृज की धरती पर इस बार भी लठ्ठमार होली ने लोगों का दिल जीत लिया। राधा रानी की नगरी बरसाने में विश्व प्रसिद्ध लठ्ठमार होली को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों पर्यटक और श्रद्धालु उमड़े। होली की शुरुआत रसिया गायन के साथ हुई, जिसमें प्रेम और भक्ति की रसधार बह उठी।
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शाम करीब 5 बजे बरसाने की गलियां उत्साह और उमंग से गूंज उठीं, जब पारंपरिक लठ्ठमार होली खेली गई। 16 श्रृंगार से सजी बरसाने की हुरियारिनें (महिलाएं) नंदगांव से आए हुरियारों (पुरुषों) पर प्रेम रस से भीगीं लाठियां बरसाने लगीं। नंदगांव के हुरियारे ढालों की ओट में खुद को बचाने की कोशिश करते दिखे, लेकिन हर लाठी में प्यार और हंसी-ठिठोली छिपी हुई थी।
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इस अनोखी होली का आयोजन दो दिनों तक होता है। पहले दिन नंदगांव के युवक बरसाना पहुंचते हैं, जहां बरसाने की हुरियारिनें उन पर लाठियां बरसाती हैं। अगले दिन बरसाने के युवक नंदगांव जाकर वहीं परंपरा निभाते हैं। यह होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण की प्रेम कथा और बृज की संस्कृति का जीवंत चित्रण है।
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कहा जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत राधा-कृष्ण के प्रेम से जुड़ी एक कथा से हुई थी। मान्यता है कि बाल कृष्ण, अपने सखाओं के साथ राधा से होली खेलने बरसाना आए थे। कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों पर रंग डाल दिया, जिससे नाराज होकर राधा रानी की सखियां झाड़ियों से कृष्ण और उनके सखाओं को मारने लगीं। तभी से यह परंपरा शुरू हुई, जो आज भी उतने ही उल्लास और भक्ति भाव से निभाई जाती है।
लठ्ठमार होली देखने के लिए हर साल देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और पर्यटक बरसाना और नंदगांव पहुंचते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण रसिया गायन, ढोल-नगाड़ों की थाप और “राधे-राधे” के जयघोष से गूंज उठता है।
बृज की इस अनूठी होली में प्रेम, भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। रंग, उमंग और उत्साह से भरी इस परंपरा ने इस बार भी सभी के दिलों में अपनी छाप छोड़ दी।