"ईश्वर की सृष्टि में हमारी भूमिका: श्रद्धा, विवेक और न्याय का संतुलन"

सृष्टि के रचियता, संचालक तथा पालक ईश्वर है। अपनी सम्पूर्ण सृष्टि उसे प्रिय है। अत: उस ईश्वर के प्रति जो हमारी श्रद्धा है वैसी ही प्रियता हमें उनकी कृतियों पर भी रखनी चाहिए। परमात्मा ने सभी को कर्म करने को स्वतंत्र कर रखा है। अपनी इच्छा किसी पर आरोपित भी नहीं की। हां उसने हमें सद्ज्ञान और विवेक प्रदान किया है, जिससे उचित अनुचित में अन्तर कर सके। उसी के अनुसार हमें आचरण करना चाहिए, जिससे व्यवस्था में अव्यस्था पैदा न हो सृष्टि का स्वरूप न बिगड़े। हमें चाहिए कि हम संसार में ईश्वर की उपस्थिति का आभास और अनुभव करे। यह तथ्य हमें हर पल ध्यान में रहना चाहिए कि उसकी दृष्टि सदैव हमारे ऊपर है। भगवान के प्रति और उनकी सृष्टि के प्रति अपनी श्रद्धा को कम न होने दें। यदि आप सच्चे श्रद्धालु हैं तो सत्य, न्याय की रक्षा करते और दूसरों के कल्याण के कार्य हमें निरन्तर करते रहने होंगे। आप रावणों और दु:शासनों को सुधरने का अवसर तो अवश्य दें, उनका मार्गदर्शन भी करे फिर भी न सुधरे जो समाज में अशान्ति पैदा करना चाहते हैं, जो सृष्टि का स्वरूप बिगाडऩे पर तुले हैं तो उन्हें समाज से हटाने हेतु कोई भी मार्ग अपनाना पड़े तो यह श्रद्धेय सृजेता का अनुसरण ही होगा।