पुनर्विचार का महत्व: सोच-समझकर लिए गए निर्णय ही सफलता की कुंजी
अपने द्वारा संपादित किसी भी कार्य पर पुनर्विचार करना श्रेष्ठ माना गया है। इससे हमारे द्वारा किए गए कार्यों में हुई त्रुटियों का बोध हो जाता है। पुनर्विचार का अर्थ है मस्तिष्क का खुला होना—सभी प्रकार के विचारों को ग्रहण कर निष्पक्ष रूप से निष्कर्ष तक पहुँचना।
अक्सर देखा गया है कि पहले कथन कर देना और बाद में विचार करना प्रायश्चित की स्थिति उत्पन्न कर देता है। कई बार ऐसे प्रायश्चित से भी वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते। इसलिए इस पछतावे से बचने का श्रेष्ठ मार्ग है—पुनर्विचार।
यदि व्यक्ति स्वयं के बारे में, प्रचलित धारणाओं, सिद्धांतों और सामाजिक परंपराओं पर पुनर्विचार करता है, तो उसे जीवन में नवीन दृष्टि और नए मार्ग दिखाई देते हैं। गुरुजनों की शिक्षाएँ, सच्चे संतों और मनीषियों के उपदेश तथा सत्शास्त्रों का अध्ययन पुनर्विचार के प्रमुख प्रेरणा स्रोत हैं।
अतः यह श्रेयस्कर है कि बाद में पछतावे की स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए हम कुछ भी कहने या करने से पहले एक बार अवश्य पुनर्विचार करें। इसमें न केवल हमारा हित निहित है, बल्कि उनका भी, जो हमारे कार्य और कथन से प्रभावित होते हैं।
