अडानी ग्रुप की घिरौली कोल माइन परियोजना पर हाईकोर्ट सख्त, लाखों पेड़ों की कटाई पर गंभीर सवाल, सुनवाई अब पांच जनवरी को

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अर्चना सिंह Picture



जबलपुर। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में अडानी ग्रुप की घिरौली कोल माइन परियोजना को लेकर लाखों पेड़ों की कटाई का मामला अब सीधे हाईकोर्ट की कड़ी निगरानी में आ गया है। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच में हुई सुनवाई के दौरान इस मामले से जुड़े कई अहम और चिंताजनक तथ्य सामने आए। कोर्ट को बताया गया कि इस परियोजना को लेकर पहले से ही एक जनहित याचिका दायर की जा चुकी है, जिसे सिंगरौली की बैढ़न जनपद पंचायत अध्यक्ष सविता सिंह ने दाखिल किया है।

याचिकाकर्ता सविता सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्मानंद पाठक ने कोर्ट के समक्ष तथ्य रखते हुए कहा कि हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद अडानी ग्रुप के कोल माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए लगभग 6 लाख पेड़ों की कटाई लगातार जारी है। अधिवक्ता ने यह भी बताया कि जिस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई हो रही है, वहां आम नागरिकों और मीडिया के प्रवेश पर रोक है। इस कारण यह जान पाना लगभग असंभव हो गया है कि कोर्ट के आदेशों के बाद वास्तव में जमीनी स्थिति क्या है और कितनी कटाई अब भी की जा रही है।

कोर्ट ने इस पूरे मामले को अत्यंत गंभीर मानते हुए सविता सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका को मुख्य याचिका के साथ जोड़ने का आदेश दिया। इसके बाद स्वतः संज्ञान मामले में हस्तक्षेप करने वाले अधिवक्ता मोहित वर्मा ने अपना आवेदन वापस ले लिया। अदालत ने याचिकाकर्ता सविता सिंह को सुझाव दिया कि यदि कोर्ट के आदेश के बावजूद पेड़ों की कटाई जारी है, तो वे स्वयं इसकी निगरानी करें और अवमानना याचिका दायर करें। इस जनहित याचिका में अडानी समूह की कंपनी स्टारटेक मिनरल रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में सिंगरौली क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की गई है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्वतः संज्ञान से दर्ज याचिका पर भी विस्तार से विचार किया। 17 दिसंबर को सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि जिन पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जा रहा है, उनकी जियो-टैगिंग की जा रही है और पेड़ लगाए जाने वाली नई जगहों की जानकारी भी कोर्ट को दी गई है। हालांकि जब अदालत ने इन नई जगहों का अवलोकन किया तो सरकार की दलीलों पर असंतोष जताया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जिन स्थानों पर पेड़ लगाए जाने का दावा किया जा रहा है, वहां पहले से ही घना जंगल मौजूद है। इस पर कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और अगली सुनवाई में यह स्पष्ट जवाब देने को कहा कि किन-किन स्थानों पर और कितनी भूमि पर पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई है।

गौरतलब है कि सिंगरौली के घिरौली कोल ब्लॉक में हजारों हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्जन किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत करीब 5.7 से 6 लाख पेड़ों की कटाई का प्रस्ताव है। इसके साथ ही लगभग 620 परिवारों के विस्थापन की स्थिति भी बन रही है। इस परियोजना को लेकर क्षेत्र में लंबे समय से समुदाय का विरोध जारी है। हालात इतने तनावपूर्ण रहे हैं कि पुलिस बंदोबस्त, धारा 144 लागू होने और यहां तक कि विधानसभा में इस मुद्दे पर वॉकआउट तक की नौबत आ चुकी है।

अब जब यह पूरा मामला सीधे हाईकोर्ट की सख्त निगरानी में आ गया है, तो पर्यावरण संरक्षण, वन भूमि और प्रभावित परिवारों के भविष्य को लेकर उम्मीद और सवाल दोनों ही खड़े हो गए हैं। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि वह इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करेगा। इस संवेदनशील मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को निर्धारित की गई है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

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