"दूसरों की आलोचना से पहले समझना जरूरी: शांति और सम्मान का मार्ग"
दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करना चाहिए। परिस्थितियों को जाने‑समझे बिना यदि हम किसी में कमियाँ निकालने लगें, तो विवाद की संभावना बढ़ जाती है। किसी के छिपे हुए दोषों को उजागर करने से उसकी प्रतिष्ठा भले ही कम हो जाए, लेकिन ऐसा करने से हमारा विश्वास भी समाप्त हो जाता है।
दूसरों के कृत्य‑अकृत्य पर ध्यान देने के बजाय अपने कर्मों का अवलोकन करना अधिक उचित है। निंदक का स्वभाव तो निंदा करना ही होता है। यह संसार ऐसा है जहाँ अधिक बोलने वाले की भी निंदा होती है और कम बोलने वाले की भी। कंजूस की तो निंदा होती ही है, लेकिन निंदक दानी को भी नहीं छोड़ते।
इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसकी निंदा न होती हो। इसलिए निंदा से हतोत्साहित हुए बिना अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहना चाहिए। यदि हम अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लेंगे, तो अंततः स्वयं ही निंदा के पात्र बन जाएंगे।
