जीवन के उतार-चढ़ाव को सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकारने की कला
जीवन में सुख-दुख, हानि-लाभ, मान-अपमान और उन्नति-अवनति जैसे प्रसंग स्वाभाविक रूप से आते हैं। यह क्रम हर किसी के जीवन में चलता रहा है और आगे भी चलता रहेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इन परिस्थितियों से घबराने के बजाय उन्हें खेल भावना से स्वीकार करने की कला ही व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत बनाती है।
सत्संग, शास्त्रों के अध्ययन और श्रेष्ठ लोगों की संगति को इस दिशा में सबसे प्रभावी साधन बताया गया है। इनके संपर्क में आने से मनुष्य की दुर्बलताएं दूर होने लगती हैं और सद्गुण स्वतः विकसित होने लगते हैं। जैसे-जैसे अवगुण घटते हैं, आत्मिक बल बढ़ता है और व्यक्ति छोटी-बड़ी बाधाओं को सहज रूप से पार करने लगता है।
सहनशीलता बढ़ने पर दुख का प्रभाव भी कम हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सुख-दुख वास्तव में मन की अनुभूति है। जब मन दुख को महसूस करना बंद कर देता है, तो जीवन में हर ओर सुख ही सुख दिखाई देता है।
