वन भूमि का उपयोग कृषि, गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए नहीं.. देशी पेड़ और वनस्पतियां लगाकर जंगल को बहाल करें : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दोहराया है कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना वन भूमि का उपयोग कृषि सहित किसी भी गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कर्नाटक सरकार की एक अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि वन भूमि पर कृषि गतिविधि की अनुमति देने या उसे जारी रखने से अनिवार्य रूप से वन क्षेत्र की कटाई होगी। ऐसा करना वन संरक्षण से संबंधित वैधानिक योजना के तहत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें एक सहकारी समिति को कृषि उद्देश्यों के लिए वन भूमि पर पट्टे पर जारी रखने के संबंध में अपना पक्ष रखने की अनुमति दी गई थी।
यह मामला 1976 में कर्नाटक सरकार द्वारा दिए गए एक पट्टे से जुड़ा है, जिसके तहत 134 एकड़ वन भूमि एक सहकारी समिति को 10 साल के लिए कृषि उपयोग हेतु आवंटित की गई थी। पट्टे की अवधि के दौरान पेड़ों की कटाई और खेती की गई, लेकिन अवधि समाप्त होने के बाद राज्य सरकार ने इसे नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया और वन विभाग ने जमीन का कब्जा वापस ले लिया। पर उच्च न्यायालय ने समिति को पट्टे को जारी रखने के लिए केंद्र सरकार से संपर्क करने की छूट दे दी थी, जिसे अब उच्चतम न्यायालय ने गलत ठहराया है।
उच्चतम न्यायालय ने टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुल्पद बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि वन क्षेत्रों के भीतर किसी भी गैर-वन गतिविधि को तब तक रोकना होगा जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से मंजूरी न दी जाए। न्यायालय ने कर्नाटक वन विभाग को निर्देश दिया है कि वह विशेषज्ञों के परामर्श से 12 महीने के भीतर संबंधित भूमि पर देशी पेड़ और वनस्पतियां लगाकर जंगल को बहाल करे।
