नयी दिल्ली-उच्चतम न्यायालय ने रिश्वत लेकर नौकरी देने के घोटाले से जुड़े धन शोधन के एक मामले जमानत के बाद मंत्री बने तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी से बुधवार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर अपने पद (मंत्री) से इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें (इस मामले में) पहले दी गई जमानत रद्द कर दी जाएगी।
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न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय और अन्य द्वारा दायर आवेदनों पर सुनवाई के दौरान उन्हें दोनों (मंत्री पद या जमानत) में से एक विकल्प चुनने का फैसला करने के लिए 28 अप्रैल तक का समय दिया।
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शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए कि मामले के गुण-दोष के आधार पर उन्हें जमानत नहीं दी गई है, उनके अधिवक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा,“आपको मंत्री पद और स्वतंत्रता में से किसी एक को चुनना होगा। आप क्या चुनना चाहते हैं।”
आवेदनों में बालाजी को इस आधार पर दी गई जमानत को वापस लेने की मांग की गई थी कि वह मामले में गवाहों को प्रभावित कर रहे थे।
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शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर, 2024 को बालाजी को जमानत दी थी। इसके बाद उन्होंने 29 सितंबर को राज्य की डीएमके सरकार में मंत्री के रूप में शपथ ली।
इसके बाद अदालत ने इस बात पर अपनी नाराजगी और गंभीर चिंता व्यक्त की कि कैसे बालाजी को कैबिनेट मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया गया।
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पीठ ने मंगलवार को पिछले फैसले में की गई टिप्पणियों का हवाला देते हुए उनके आचरण और उनके मंत्री पद पर पुनर्नियुक्ति पर सवाल उठाया, जिसमें दर्ज किया गया था कि एक मंत्री के रूप में उन्होंने लोगों को शिकायतें वापस लेने के लिए मजबूर किया और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध में उनकी भूमिका थी।
शीर्ष अदालत ने बताया कि उसने उन्हें केवल मुकदमे में देरी और लंबी कैद के आधार पर जमानत दी थी।
पीठ धन शोधन मामलों में जमानत पर उच्चतम न्यायालय के उदार रुख के दुरुपयोग के बारे में चिंतित थी।
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि बालाजी को योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के आधार पर जमानत दी गई थी।
हालांकि, श्री सिब्बल ने कहा कि अगर उनके द्वारा प्रभावित होने की आशंका है तो मुकदमे को राज्य से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है।
शीर्ष न्यायालय ने पूछा कि यदि ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोड़ दिया जाता है (जबकि पिछले निर्णय में इस अपराध में उसकी भूमिका के बारे में स्पष्ट निष्कर्ष दिए गए थे) तो सर्वोच्च न्यायालय के बारे में क्या संकेत जाएगा।
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शीर्ष अदालत ने यह भी बताया कि मंत्री के रूप में उनके इस्तीफे को उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत के लिए याचिका दायर करने के लिए ‘परिस्थितियों में बदलाव’ के रूप में उद्धृत किया गया था, हालांकि, शीर्ष न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के तुरंत बाद उन्होंने मंत्री के रूप में शपथ ली।
पीठ ने पूछा,“इस न्यायालय के निष्कर्ष और निर्णय मंत्री के रूप में इस अपराध में उनकी भूमिका को दर्शाते हैं। क्या हम इसे अनदेखा कर सकते हैं? हम क्या संकेत दे रहे हैं।”
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पीठ ने कहा कि वह कहेगी कि उसने पिछले निर्णय को अनदेखा करके गलती की, जिसमें बालाजी के खिलाफ निष्कर्ष दर्ज किए गए थे।
अदालत ने कहा,“हम इसे आदेश में दर्ज करेंगे कि हमने आपके खिलाफ निर्णयों को अनदेखा करके गलती की है, क्योंकि पूरी सुनवाई इस आधार पर हुई कि वह अब मंत्री नहीं हैं। हम अपनी गलती स्वीकार करेंगे।”
इस पर श्री सिब्बल ने जोर देकर कहा कि बालाजी द्वारा गवाहों को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं है। उन्होंने पूछा,“कोई गवाह कटघरे में नहीं आ रहा है, मैं कैसे प्रभावित करूंगा।”
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पीठ ने पलटवार करते हुए कहा,“आप उन्हें आने से रोक रहे हैं।”
पीठ ने कहा,“हमें परेशानी यह है कि पीएमएलए के मामले में पहली बार हमने ऐसा कानून लागू किया है कि अगर मामला शुरू नहीं होने वाला है तो हम जमानत दे देंगे। जब हमने निचली अदालत और उच्च न्यायालय के आदेश पढ़े तो हमें बताया गया कि वह अब मंत्री नहीं हैं। इसलिए हमने इस निर्णयों के आधार पर लगाए गए आरोपों को नजरअंदाज कर दिया कि वह अब मंत्री नहीं हैं। अब आप जमानत देने के आदेश के कुछ दिनों के भीतर बदलाव लाते हैं और वह फिर से मंत्री बन जाते हैं।”
पीठ ने कहा कि अदालत के साथ यह तरीका नहीं है। पीठ ने श्री सिब्बल से कहा,“इसके बाद हमें दोष न दें कि यह अदालत जमानत देने में उदार नहीं है। आप जानते हैं कि पीएमएलए में जमानत पाना कितना मुश्किल है।”