अयोध्या में दीपोत्सव -इस तरह के विश्व रिकॉर्ड्स का क्या किया जाए ?

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उत्तर प्रदेश में दीपोत्सव की शुरुआत वर्ष 2017 में हुई थीजब केवल 1.71 लाख दीये जलाए गए थे। तब से हर वर्ष यह आयोजन और भव्य होता गया हैऔर 2025 में इसकी संख्या बढ़कर 26.17 लाख तक पहुंच गई। अयोध्या में इस वर्ष दीपोत्सव 2025 में राम की पैड़ी और सरयू नदी के तटों पर करीब 26,17,215 दीये एक साथ जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया। यह आयोजन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा प्रमाणित किए जाने की प्रक्रिया में है। इस अवसर पर 2,128 श्रद्धालुओं ने एकसाथ आरती और दीये-प्रज्वलन का समवर्ती अनुष्ठान कियाजो एक अलग रिकॉर्ड के रूप में दर्ज हुआ। कार्यक्रम में लगभग 33,000 स्वयंसेवक और हजारों श्रद्धालु शामिल हुए।

भाजपा सरकार के अनुसार दीपोत्सव का उद्देश्य अयोध्या को एक वैश्विक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रस्तुत करना है। ड्रोन शोलेजर लाइटिंगसांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और तकनीकी प्रदर्शनों के साथ “नव-अयोध्या”, “धार्मिक पर्यटन” और “संस्कृति-विकास” के प्रतीक के रूप में अयोध्या की ब्रांडिंग करके स्थानीय अर्थव्यवस्था और सेवा क्षेत्र को लाभ मिलने का दावा किया जा रहा है। जिससे पर्यटन-उद्योगहोटल-अकॉमोडेशनस्थानीय सेवा-उद्योग को बल मिलने, अयोध्या में रियल इस्टेट की कीमतें कई गुना बढ़ने कुम्हार-परिवारों और हस्तशिल्प कारीगरों को रोजगार और आय का स्रोत मिलने का दावा शामिल है।

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लेकिन इसी सिक्के का दूसरा पहलू भी है। टीका टिप्पणी को हवा ना मिले इसके लिए पिछले ढेरों सालों से हो रहे अयोध्या के दीपोत्सव के संबंध में कुछ बजट आबंटन या खर्च-संबंधी जानकारी पूरी तरह से वर्ष-वार स्पष्ट व विस्तृत आंकड़े सार्वजनिक नहीं हैं। तो क्या यूपी सरकार के पास इस क्षेत्र में उपलब्धि वाकई सराही जाने योग्य है? क्या करदाताओं के पैसों से और सरकारी खर्चों से किये जा रहे ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देने से उत्तर प्रदेश की समस्याएं हल हो सकती हैं? ऐसे सवाल उठ रहे हैं। ऐसे अजीब रिकॉर्ड्स का यूपी करेगा क्या इन आयोजनों पर कितना खर्च हो रहा है और अयोध्या शहर को हुआ फायदा क्या यूपी को भी हो रहा है ऐसे कई सवाल बरकरार हैं।

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क तरफ ऐसे आयोजनों पर बेशुमार खर्च करके किसी तरह के रिकॉर्ड बनाना और अपनी असली हकीकत से मुँह छुपाना ये अपने आप मे विरोधाभास है. उत्तर प्रदेश भारत का एक ऐसा राज्य हैजो अपनी विशाल क्षमता के बावजूद गरीबीकम साक्षरताखराब स्वास्थ्यऔर कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण पिछड़ा हुआ है। यह न केवल भारत के अन्य राज्यों सेबल्कि वैश्विक स्तर पर भी कई विकासशील देशों से पीछे है। ऐसे में बजट और संसाधनों का बड़ा हिस्सा ऐसे आयोजनों में व्यय होता हैजिससे शिक्षास्वास्थ्य और स्थानीय विकास जैसे बुनियादी क्षेत्रों पर ध्यान कम हो सकता है। रिकॉर्ड बनाने” की प्रवृत्ति कहीं विकास की प्राथमिकताओं को पीछे न छोड़ देयह सुनिश्चित करना आवश्यक है।

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उत्तर प्रदेश (यूपी)भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्यअपनी विशाल जनसंख्या (लगभग 24 करोड़) के कारण वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान या ब्राजील से तुलनीय है। लेकिन सामाजिकआर्थिक और पर्यावरणीय संकेतकों में यह भारत और दुनिया के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है। नीति आयोगरघुराम राजन समिति (2013), और संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसारयूपी BIMARU (बिहारमध्य प्रदेशराजस्थानउत्तर प्रदेश) समूह का हिस्सा हैजो भारत के विकास को पीछे खींचता है। कुछ संकेतकों में यूपी की स्थिति उप-सहारा अफ्रीकी देशों (जैसे माली) से भी बदतर है। 2025 तक के नवीनतम आंकड़े (NITI Aayog MPI 2023, RBI 2024) सुधार दिखाते हैंलेकिन यूपी अभी भी कई मामलों में सबसे निचले पायदान पर है।उन प्रमुख क्षेत्रों का विश्लेषण करता हैजिनमें उत्तर प्रदेश पिछड़ा हैऔर इसके कारणों की पड़ताल करना सरकार कब का भूल चुकी है.

गरीबी और बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) की पड़ताल करें तो उत्तर प्रदेश में 22-25% आबादी (लगभग करोड़ लोग) बहुआयामी गरीबी में जी रही है। इसमें पोषणशिक्षास्वास्थ्यऔर स्वच्छता जैसे मूलभूत क्षेत्र शामिल हैं। NITI आयोग के 2023 के आंकड़ों के अनुसारयूपी भारत में बिहार (33%) और झारखंड (28%) के बाद तीसरे स्थान पर है। वैश्विक MPI में यूपी निचले 20% राज्यों में आता हैजो इसे माली ($2,246 PPP) जैसे देशों के करीब लाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और खराब हैजहाँ स्वच्छ पेयजल और बिजली तक सीमित पहुंच है।

2024 में यूपी की प्रति व्यक्ति आय ₹93,422 (NSDP) हैजो राष्ट्रीय औसत (₹1.7 लाख) से 45% कम है। यह भारत के निचले पांच राज्यों (बिहारओडिशाझारखंडमणिपुर) में शामिल है। खरीद शक्ति समता (PPP) में यह $2,252 हैजो वैश्विक स्तर पर निम्न-आय वाले देशों के बराबर है। 2012 के बाद से आय दोगुनी हुईलेकिन विकास दर अन्य राज्यों की तुलना में धीमी हैजिससे यूपी आर्थिक रूप से पिछड़ता है।

यूपी की साक्षरता दर 67.7% (2011 अपडेट 2024) हैजिसमें पुरुष 77.3% और महिलाएँ 57.2% हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह 60% से भी कम है। यह भारत के निचले 10 राज्यों में शामिल हैजहाँ राष्ट्रीय औसत 74% है। विशेष रूप से महिला साक्षरता में यूपी 28वें स्थान पर हैजो BIMARU राज्यों में सबसे कम है। शिक्षा की गुणवत्ता भी निम्न हैऔर स्कूल ड्रॉपआउट दर (विशेषकर लड़कियों में) राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

उत्तर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (IMR) 64 प्रति 1,000 जन्म और मातृ मृत्यु दर (MMR) 167 प्रति लाख जन्म है। यह भारत में सबसे खराब IMR और तीसरी सबसे खराब MMR (बिहार और असम के बाद) है। ये आंकड़े कई अफ्रीकी देशों (जैसे मालीचाड) से भी बदतर हैं। NFHS-5 (2019-21) के अनुसारटीकाकरण और पोषण की कमी ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर समस्या है। इसके अलावाकोविड-19 के दौरान यूपी में सड़क हादसों से 41,746 मौतें हुईंजो स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रणालियों की कमजोरी दर्शाता है।

यूपी में बेरोजगारी दर 7-8% (NSSO 2023) हैजो राष्ट्रीय औसत (6%) से अधिक है। 50 लाख से अधिक मजदूर रोजगार के लिए अन्य राज्यों (महाराष्ट्रगुजरातदिल्ली) में प्रवास करते हैं। BIMARU राज्य भारत की 45% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैंलेकिन GDP में केवल 8-9% योगदान देते हैं। यूपी की अर्थव्यवस्था 70% कृषि पर निर्भर हैलेकिन कम उत्पादकता और बाढ़-सूखा जैसी समस्याएँ इसे और कमजोर करती हैं।

यूपी में बुनियादी ढांचाविशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों मेंबेहद कमजोर है। वैश्विक स्तर पर खुले में शौच के 60% मामले भारत में हैंऔर यूपी इसका बड़ा हिस्सा है। स्वच्छ भारत मिशन के बावजूदग्रामीण स्वच्छता में प्रगति धीमी है। सड़क घनत्व राष्ट्रीय औसत से कम हैऔर 101 आकांक्षी जिलों में से 6 (श्रावस्तीबलरामपुरसिद्धार्थनगरचंदौलीफतेहपुरबहराइच) यूपी में हैं। पूर्वी यूपी विशेष रूप से पिछड़ा है। यूपी में गंगा नदी का प्रदूषण वैश्विक स्तर पर उच्च हैऔर गंगा सफाई परियोजना असफल रही है। कृषिजो 70% आबादी का आधार हैकम उत्पादकता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रही है। प्रति हेक्टेयर उपज राष्ट्रीय औसत से कम हैऔर बाढ़-सूखे से वार्षिक नुकसान होता है। यह यूपी को पर्यावरणीय और आर्थिक रूप से कमजोर बनाता है।

यूपी में अपराध दरविशेष रूप से पुलिस हिरासत में मौतें (2014 में 365), भारत में सबसे अधिक हैं। जाति और सांप्रदायिक हिंसा भी आम है। NCRB और NHRC के आंकड़े दिखाते हैं कि यूपी के 75 जिलों में शासन और विकास असमान है। राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार ने दीर्घकालिक विकास को बाधित किया है।

सभी भाजपा और आरएसएस नेताओं में कम्युनिस्टों के प्रति घोर घृणा का भाव देखा जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी शासित राज्य केरल से उत्तर प्रदेश की तुलना किसी भी मायने में नहीं की सकती। केरल सरकार सार्वजनिक सुरक्षा और सुविधाओं को महत्व देती है वही केरल की प्रगति का एक मुख्य कारण है। 2022 के यूएनडीपी उप-राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसारकेरल का एचडीआई 0.758 है (भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दूसरा स्थान)जो इसे "उच्च मानव विकास" श्रेणी में रखता है। इसके विपरीतउत्तर प्रदेश का एचडीआई 0.609 है (36 में से 34वां स्थान)जो "मध्यम मानव विकास" श्रेणी में आता है। दोनों राज्यों के एचडीआई में 0.149 का अंतर हैजो एक महत्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है।

केरल के नाम यूपी के दीपोत्सव की तरह का कोई विश्व रिकॉर्ड नहीं है। लेकिन फिर भी दक्षिण भारत के कई राज्यों की तरह केरल स्पष्ट रूप से उत्तर प्रदेश से बेहतर प्रदर्शन कर रहा हैक्योंकि इसका एचडीआई स्कोर और सभी उप-घटक उत्तर प्रदेश से काफी ऊंचे हैं। केरल का प्रदर्शन इसे वैश्विक स्तर पर मध्यम-आय वाले देशों (जैसे मैक्सिको या चीन) के समकक्ष रखता हैजबकि उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन दक्षिण एशिया के निम्न-मध्यम विकास स्तर के करीब है।

केरल और उत्तर प्रदेश के बीच इस अंतर के पीछे नीतिगत प्राथमिकताएंसंसाधन आवंटनऔर सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं में दीर्घकालिक अंतर हैं। केरल की जीवन प्रत्याशा 73.43 वर्ष हैजो उत्तर प्रदेश से लगभग वर्ष अधिक है। इसका कारण 1970 के दशक से केरल में मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश हैजैसे कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का व्यापक नेटवर्कउच्च टीकाकरण दरऔर मातृ-शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम। उत्तर प्रदेशअपनी विशाल जनसंख्या (24 करोड़ से अधिक) और कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था के साथकुपोषणग्रामीण क्षेत्रों में खराब स्वच्छताऔर असमान स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियों का सामना करता हैजिसके परिणामस्वरूप शिशु मृत्यु दर अधिक है और जीवन प्रत्याशा कम है।

केरल की साक्षरता दर 96% से अधिक हैऔर इसका सार्वजनिक शिक्षा तंत्र प्रभावी है। मुफ्त मध्याह्न भोजन योजना और लिंग-समावेशी नीतियों ने विशेष रूप से लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा दिया हैजिसके परिणामस्वरूप औसत और अपेक्षित स्कूली शिक्षा के वर्ष अधिक हैं। उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में कम नामांकन (विशेषकर लड़कियों के लिए)शिक्षकों की कमीऔर बुनियादी ढांचे की कमी जैसी समस्याएं हैंजिसके कारण शिक्षा उपलब्धि केरल की तुलना में लगभग दो-तिहाई है।

दोनों राज्यों की प्रति व्यक्ति आय औद्योगिक राज्यों जैसे महाराष्ट्र की तुलना में कम हैलेकिन केरल को अपने वैश्विक प्रवासी कार्यबल (विशेषकर खाड़ी देशों में) से प्राप्त प्रेषण और पर्यटन से लाभ होता है। साथ हीकेरल में धन का वितरण अधिक समान है। दूसरी ओरउत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और असंगठित श्रम पर निर्भर हैजहां गरीबी दर (लगभग 30% बनाम केरल की 0.5%) और असमानता अधिक है।

केरल का "केरल मॉडल" सामाजिक कल्याण पर केंद्रित विकास रणनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैजो तीव्र औद्योगीकरण के बिना भी मानव पूंजी में निवेशअसमानता में कमीऔर लचीलापन निर्माण करता है। उत्तर प्रदेश ने हाल के वर्षों में प्रगति की हैजैसे कि आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के माध्यम सेलेकिन इसकी विशाल जनसंख्या और संसाधन बाधाओं के कारण इन प्रयासों को व्यापक स्तर पर लागू करना चुनौतीपूर्ण है। 2023 में भारत का राष्ट्रीय एचडीआई 0.685 तक पहुंचालेकिन केरल और उत्तर प्रदेश जैसे अंतर-राज्य अंतर दर्शाते हैं कि पिछड़े राज्यों में लक्षित सुधारों की आवश्यकता है।

आँकड़े बताते हैं कि यूपी और बिहार दोनों राज्यों में ट्रिपल इंजन की सरकारें होने पर भी ये दोनों भारत में रोजगार के लिए पलायन करनेवाले 2 सबसे बड़े राज्य हैं। ग्रामीण इलाकों/कम-विकसित जिलों में स्थायी एवं गुणवत्तापूर्ण रोजगार अवसरों की कमी हैजिससे लोग अन्य राज्यों या महानगरों की ओर जाते हैं। यूपी में बहुत से कामकाजी लोग अर्धकुशल या अकुशल श्रमिक हैं। परिवार के बोझसीमित स्थानीय अवसरपर्याप्त रोजगार न मिलने की आशंका आदि कारणों से लाखों लोग दूसरे राज्यों या श्रम आधारित कामों के लिए पिछले 2 दशकों से खाड़ी देशों में पलायन कर रहे हैं।  यदि पर्याप्त अवसर होते तो इतनी संख्या में लोग बाहर नहीं जाते। उनमें बेहतर-स्किल या काम-के अवसर तलाशने वाले पढे लिखे होनहार युवा भी Adv. Sanjay pandeyहैंजिनके हिसाब से यूपी में उन्हें उनका कोई भविष्य नजर नहीं आता।  पलायन की प्रवृत्ति सामाजिक असम-वितरणअवसर-असमानता और विकास के विषम वितरण का संकेत देती है — जो सुधार-नीति के लिए चेतावनी है।

ऐसी स्थिति मेंराज्य को “बेहतर तरह के रोजगारस्किल्स-उन्नयनउद्योग एवं निजी क्षेत्र निवेश” को बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि लोग अपने-अपने स्थान पर बने रह सकें और पलायन कम हो। लेकिन सरकार की प्राथमिकताएँ अभी भी यूपी को आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र बनाने का है और इसीलिए महाकुंभ और दीपोत्सव जैसे कार्यक्रम यूपी की पहचान बनाने की कोशिश सरकार करती है। इससे क्या यूपी का कोई उज्ज्वल भविष्य हो सकता है, जवाब आप खुद सोचिए। फिलहाल दीपोत्सव जैसे विश्वरिकॉर्ड्स पर ‘विश्वगुरु’ बनने पर खुश होकर मन को बहला लीजिए।  

 -संजय पांडे 

अधिवक्ता 

मुंबई उच्च न्यायालय 

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