ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र वालों के लिए सोशल मीडिया पर दुनिया का पहला बैन लागू किया
सिडनी। ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर दुनिया का पहला बैन बुधवार को लागू हो गया। इस बैन के अंतर्गत फेसबुक, यूट्यूब, टिकटॉक और एक्स सहित 10 बड़े प्लेटफॉर्म को उन्हें अकाउंट बनाने से रोकना होगा।
सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के अनुसार, ऑस्ट्रेलियाई संघीय संसद ने पिछले साल नवंबर में ऑनलाइन सुरक्षा संशोधन (सोशल मीडिया न्यूनतम आयु) विधेयक 2024 पारित किया था, जिसमें कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को 16 साल से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट बनाने से रोकने के लिए 'उचित कदम' उठाने की जरूरत है। जो प्लेटफॉर्म इसका पालन नहीं करते हैं, उन पर 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग 32.8 मिलियन डॉलर) तक का जुर्माना लग सकता है। 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए, जो उम्र-प्रतिबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं, या उनके माता-पिता या देखभाल करने वालों के लिए कोई सजा नहीं है। अब तक, 10 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इस बैन को लागू करने का निर्देश दिया गया है। इसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, थ्रेड्स, टिकटॉक, ट्विच, एक्स, यूट्यूब, किक और रेडिट शामिल हैं। अधिकारी जरूरत के हिसाब से लिस्ट को अपडेट कर सकते हैं।
एक हालिया पोल से पता चलता है कि सोशल मीडिया बैन को जनता का व्यापक समर्थन मिला है, जिसमें 73 प्रतिशत ऑस्ट्रेलियाई इसके समर्थन में हैं। फिर भी, केवल 26 प्रतिशत को ही भरोसा है कि यह उपाय काम करेगा, और 68 प्रतिशत का मानना है कि बच्चे इससे बचने का रास्ता निकाल लेंगे। ऑस्ट्रेलियाई-आधारित ग्लोबल डेटा, इनसाइट्स और डिजिटल मीडिया कंपनी प्योरप्रोफाइल द्वारा दिसंबर की शुरुआत में जारी किए गए पोल के अनुसार, शिक्षकों (84 प्रतिशत) और माता-पिता (75 प्रतिशत) के बीच समर्थन सबसे ज्यादा है, लेकिन 16 से 24 साल के लोगों में यह घटकर 62 प्रतिशत हो जाता है।
पालन करने पर सहमत होने के बावजूद, ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस उपाय का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि बैन को लागू करना मुश्किल है और यह युवाओं को इंटरनेट के अंधेरे कोनों में धकेल सकता है। ग्लोबल ऑनलाइन फोरम रेडिट ने मंगलवार को कहा कि वह कानून का पालन करेगा, लेकिन इसके 'दायरे, प्रभावशीलता और प्राइवेसी के असर' से असहमत है। बता दें कि ऑस्ट्रेलिया के टीनएजर्स पर सोशल मीडिया बैन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा है, जिसमें डेनमार्क, मलेशिया, ब्राजील, इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड सहित कई देश कथित तौर पर इसी तरह के उपायों पर विचार कर रहे हैं।
