1904 की ऐतिहासिक मिल को मिलने वाला है नया जीवन, आधुनिक यूनिट की संभावना से इलाके में लौट सकती है आर्थिक रौनक
Bihar News: मढ़ौरा की पहचान रही 1904 में स्थापित ऐतिहासिक चीनी मिल के पुनर्जीवन की संभावना ने पूरे क्षेत्र में नई ऊर्जा भर दी है। वर्ष 1997–98 से बंद पड़ी इस मिल की 578 एकड़ विशाल जमीन पर आधुनिक तकनीक आधारित नई यूनिट स्थापित करने की संभावनाएं मजबूत हुई हैं। इस मिल ने दशकों तक स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत किया था, और अब इसके फिर से शुरू होने की उम्मीद ने किसानों और मजदूरों के जीवन में उम्मीद की किरण जगा दी है।
बंदी के बाद से लगातार गिरती अर्थव्यवस्था
मजबूरी में मौसमी खेती पर लौटे किसान
मिल चालू रहने के दौरान मढ़ौरा, तरैया, अमनौर, मकेर, मशरक, परसा और पानापुर के लगभग 5,000 किसान करीब 15,000 एकड़ में गन्ना उगाते थे। स्थिर आय और समय पर भुगतान किसानों के जीवन को संतुलित रखता था। लेकिन मिल बंद होते ही उन्हें मौसमी और जोखिमभरी खेती की ओर लौटना पड़ा। बाजार पर निर्भरता बढ़ी और आय में भारी गिरावट आई, जिससे वर्षों में उनकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती चली गई।
1500 मजदूर हुए बेरोजगार, हजारों परिवारों पर टूटा संकट
मिल के बंद होते ही 1500 मजदूरों की नौकरी चली गई। परिवहन, ढुलाई, छोटे कारोबारी, सप्लाई चेन और दुकानदारों की कमाई पर भी तगड़ा असर पड़ा। बाजार की चहल-पहल खत्म हो गई और इलाके की आर्थिक गतिविधियां ठहर सी गईं। मजदूर आज भी कहते हैं—“एक यूनिट बंद हुई, पूरा कस्बा खत्म हो गया।”
578 एकड़ भूमि बनेगी नए उद्योग की आधारशिला
25 सालों की बंदी ने मिल की इमारत, मशीनें और ढांचा लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया है। कई उपकरण चोरी हो चुके हैं और बाकी जर्जर हो चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अब पुरानी संरचना को सुधारने के बजाय नई तकनीक आधारित फैक्ट्री लगाना ही बेहतर विकल्प है। इस दिशा में सबसे बड़ी पूंजी यह है कि परिसर में 578 एकड़ जमीन पहले से उपलब्ध है—जो किसी भी बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट के लिए आदर्श मानी जाती है।
इलाके में फिर लौट सकती है उद्योग की रौनक और रोजगार
मिल पुनर्संचालन की खबर ने पूरे इलाके में नई जान डाल दी है। किसानों का कहना है कि गन्ना खेती की वापसी से आय बढ़ेगी और स्थिर आर्थिक व्यवस्था बनेगी। मजदूरों को उम्मीद है कि रोजगार के अवसर मिलेंगे और इलाके में फिर से बाजार की रौनक लौटेगी। लोगों का साफ कहना है- “मिल का शुरू होना सिर्फ फैक्ट्री का चालू होना नहीं, बल्कि मढ़ौरा की खोई पहचान की वापसी है।”
