महाभारत में अर्जुन का मोह और भगवान कृष्ण का उपदेश
महाभारत युद्ध के प्रारंभ में जब अर्जुन युद्धभूमि पर अपने ही संबंधियों, गुरुजनों और मित्रों को देखकर भ्रमित और मोहग्रस्त हो गए थे, तब भगवान कृष्ण ने उन्हें युद्ध की रणनीति की चर्चा नहीं की। अर्जुन ने युद्ध करने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस रक्तरंजित संघर्ष का हिस्सा नहीं बनना चाहते। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे युद्ध में कितने लोग मारे जाएंगे, कितनी महिलाएं विधवा होंगी, कितने बच्चे अनाथ हो जाएंगे, कितने भाई अपनी बहनों से बिछड़ जाएंगे और कितनी नारियों का अपमान होगा। अर्जुन ने कहा कि ऐसे हालात में भीख मांगना ही उनके लिए श्रेष्ठ विकल्प होगा।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि इस समय उनका धर्म युद्ध करना और पापियों को समाप्त करना है। कर्म से विमुख होना पाप है और कर्म का पालन करना मोक्ष की दिशा में पहला कदम है। इस उपदेश ने अर्जुन के मोह और भ्रम का पर्दा हटा दिया और उन्हें अपने कर्तव्य का बोध कराया।
महाभारत में यह शिक्षण निष्काम कर्म और आत्मज्ञान का प्रतीक माना जाता है, जो बताता है कि सभी को अपने धर्म और कर्तव्य के पालन में तत्पर रहना चाहिए।
