जीवात्मा का अमरत्व और मृत्यु के भय से मुक्ति के उपाय
मनुष्य के जीवन में मृत्यु का भय सबसे बड़ा भय माना जाता है, जबकि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो मृत्यु का संबंध शरीर से है, जीवात्मा से नहीं। जीवात्मा अजर है, अमर है और नित्य है। उसका न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु। मृत्यु केवल शरीर की होती है, लेकिन मनुष्य शरीर को ही अपना सर्वस्व मान बैठता है, इसी कारण मृत्यु का भय उत्पन्न होता है।
यह सत्य है कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मृत्यु को प्राप्त होता है उसका पुनः जन्म भी सुनिश्चित है। यहां तक कि मोक्ष प्राप्त आत्माओं का भी लंबे अंतराल के बाद जन्म संभव है। संसार का यही नियम है। कोई भी व्यक्ति, पद या पदार्थ स्थायी नहीं है। यह संभव है कि किसी को कोई पद, संपत्ति या व्यक्ति न मिले, लेकिन यह असंभव है कि मिलकर बिछुड़ना न पड़े। या तो व्यक्ति के रहते पद और पदार्थ छूट जाते हैं, या फिर पद और पदार्थ के रहते व्यक्ति संसार से विदा हो जाता है।
शरीर को एक दिन छोड़ना ही पड़ेगा, क्योंकि जो मिला है उसका बिछुड़ना अनिवार्य है। इस सच्चाई को स्वीकार कर लेने से जीवन का दृष्टिकोण बदल जाता है। मृत्यु भय का कारण नहीं, बल्कि जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया बन जाती है। जब मनुष्य इन तथ्यों को स्मरण में रखकर जीवन जीता है, तब वह मृत्यु के भय से मुक्त होकर शांत, संतुलित और सदाचारपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर होता है।
