शरद ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार सही आहार और जीवनशैली

शरद ऋतु प्रकृति और शरीर दोनों के लिए एक परिवर्तन का समय होता है। इस दौरान शरीर में गर्मी, त्वचा में जलन, पसीना, अम्ल पित्त, आंखों में जलन, फोड़े-फुंसी और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। आयुर्वेद में कहा गया है कि व्यक्ति को ऋतु के अनुसार आहार और व्यवहार करना चाहिए, तभी वह स्वस्थ रहता है। इस मौसम में खाने-पीने में विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

आहार में ऐसे पदार्थ शामिल करने चाहिए जो शीतल, पचने में आसान और पित्त को शांत करने वाले हों। इस दौरान जौ, गेहूं, चावल जैसे हल्के अनाज और दूध आदि चीजों का सेवन करना चाहिए। मौसमी फल जैसे नारियल, जामुन, अमरूद और बेल शरीर की गर्मी को संतुलित रखते हैं। हरी सब्जियां जैसे लौकी, तुरई, पालक और मेथी पाचक होती हैं और पित्त को कम करती हैं। आंवला रस और नींबू पानी डिटॉक्स करने में सहायक होते हैं। इस समय ज्यादा तीखे मसाले, तला-भुना खाना, चाय, कॉफी, शराब, मांस-मछली और अत्यधिक तैलीय या मीठा भोजन नहीं लेना चाहिए क्योंकि ये पित्त दोष को और बढ़ाते हैं।
इस ऋतु में पाचन अग्नि भी थोड़ी कमजोर होती है, इसलिए भारी भोजन से बचना चाहिए। धूप में ज्यादा समय बिताना या कठिन व्यायाम करना भी शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। आयुर्वेद में कुछ घरेलू उपाय भी बताए गए हैं जो इस ऋतु में लाभकारी होते हैं, जैसे सौंफ और धनिया का काढ़ा, नारियल पानी, आंवला शरबत, शतावरी दूध आदि। इसके अलावा, जीवनशैली में थोड़ा बदलाव भी जरूरी है। सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें, नाक में घृत या अनु तेल की कुछ बूंदें डालें और दोपहर का भोजन हल्का रखें। रात को कुछ समय टहलना पित्त को शांत करता है, जिसे चंद्रप्रभा चिकित्सा कहा जाता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना भी फायदेमंद होता है। शरद ऋतु केवल एक सुंदर मौसम ही नहीं है, बल्कि यह शरीर को संतुलित करने और शुद्ध करने का भी समय है। यदि हम मौसम के अनुसार जीवनशैली और भोजन अपनाएं, तो कई रोगों से खुद को बचा सकते हैं और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।