समुद्र मंथन से जुड़ी कथाएँ
मंदार पर्वत, जो पौराणिक और आध्यात्मिक कथाओं से जुड़ा है, आज भी अतीत की अनगिनत कहानियों को समेटे खड़ा है। इस पहाड़ पर उकेरी गई कलाकृतियाँ अतीत की याद दिलाती हैं। मधुकैटभ का विशाल चेहरा, जिसे देखकर कल्पना की उड़ान भर जाती है। पापहरणी तालाब, जिसका पानी आज भी पवित्र माना जाता है, मकर संक्रांति के दिन लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
मधुसूदन की यात्रा
मकर संक्रांति के अवसर पर भगवान विष्णु, जिन्हें मधुसूदन कहा जाता है, की मूर्ति बौंसी स्थित मंदिर से मंदार पर्वत तक रथ यात्रा करती है। इस यात्रा में हजारों भक्त शामिल होते हैं। यह यात्रा कब शुरू हुई, यह निश्चित रूप से कोई नहीं कह सकता, लेकिन यह परंपरा आज भी जारी है।
मंदार की पूजा और लोककथाएँ
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने मधुकैटभ राक्षस को पराजित कर उसे मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। मधुकैटभ ने भगवान विष्णु से वादा लिया था कि हर साल मकर संक्रांति के दिन वे उसे दर्शन देने आएंगे। इसी कारण से हर साल भगवान मधुसूदन की प्रतिमा की यात्रा मंदार पर्वत तक कराई जाती है।
समुद्र मंथन और मंदार पर्वत
मंदार पर्वत को समुद्र मंथन में मथानी के रूप में प्रयोग किया गया था। पहाड़ पर अंकित लकीरें इस कथा का प्रमाण मानी जाती हैं। समुद्र मंथन से निकले गरल का पान भगवान शिव ने किया था, और इस क्षेत्र में शिव के त्रिशूल के निशान मिलते हैं।
जैन धर्म और मंदार पर्वत
मंदार पर्वत जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य की कैवल्य स्थली भी है। भगवान वासुपूज्य ने यहाँ तपस्या की और कर्म बंधन से मुक्त हो गए। आज भी यहाँ उनकी तपस्या की गुफा है, जहाँ जैन धर्मावलंबी और पर्यटक सालभर आते हैं।
मकर संक्रांति और आस्था का मेला
हर साल मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत पर मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मेला है और इसे राजकीय महोत्सव का दर्जा प्राप्त है। हर साल यहाँ लाखों की संख्या में लोग आते हैं और अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।