किसान के बेटे ने रचा इतिहास: जन्मदिन पर निशाद कुमार बने वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियन, तोड़ा अमेरिका के स्वर्ण विजेता का रिकॉर्ड

Nishad Kumar Wins Gold: हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के छोटे से गांव बदाऊं से निकले निशाद कुमार ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से पूरी दुनिया को चौंका दिया। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2025 में पुरुषों की ऊंची कूद टी-47 श्रेणी में उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया। खास बात यह रही कि यह जीत उनके 26वें जन्मदिन पर आई, जिससे यह दिन उनके जीवन का सबसे यादगार पल बन गया।
अमेरिका के स्वर्ण विजेता को पछाड़कर जीता स्वर्ण पदक
भारत की धरती पर रचा गया नया रिकॉर्ड
नई दिल्ली में आयोजित इस चैंपियनशिप में निशाद ने 2.14 मीटर की ऊंची छलांग लगाई, जो प्रतियोगिता का स्वर्ण प्रदर्शन साबित हुई। इस उपलब्धि के साथ उन्होंने अपने राज्य हिमाचल और पूरे देश को गौरवान्वित किया। उनके परिवार के सदस्य—पिता रछपाल सिंह, माता पुष्पा देवी और बहन रमा पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मौजूद रहे और बेटे की ऐतिहासिक जीत को अपनी आंखों से देखा।
संघर्षों से सफलता तक की प्रेरक यात्रा
महज छह साल की उम्र में चारा काटने की मशीन में अपना हाथ गंवाने के बाद भी निशाद ने हार नहीं मानी। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने खेलों के प्रति अपना जुनून बनाए रखा। उन्होंने पहले फाजा वर्ल्ड ग्रां प्रिक्स में स्वर्ण पदक जीता, फिर 2019 में अपनी पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया। इसके बाद टोक्यो और पेरिस पैरालंपिक में रजत पदक जीतकर उन्होंने देश को बार-बार गौरवान्वित किया।
कोच नसीम अहमद ने निखारी प्रतिभा
निशाद के पिता एक राज मिस्त्री हैं और माता गृहिणी। अंब स्कूल से जमा दो तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका खेलों के प्रति जुनून उन्हें पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम ले गया, जहां कोच नसीम अहमद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें विश्व स्तर के खिलाड़ी में ढाला।
उसैन बोल्ट से मिली प्रेरणा
निशाद बचपन में जमैका के मशहूर धावक उसैन बोल्ट से काफी प्रभावित थे। उन्होंने पहले दौड़ में अपना करियर बनाने की कोशिश की, लेकिन बाद में महसूस किया कि उनकी असली क्षमता हाई जंप में है। आज वे विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान पर हैं और भारत के सबसे भरोसेमंद पैरा एथलीट बन चुके हैं।
भारत को दिलाया अंतरराष्ट्रीय गौरव
निशाद कुमार की यह जीत न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह उस भारत का प्रतीक है जो हर चुनौती के बावजूद आगे बढ़ता है। किसान परिवार से निकले इस युवा एथलीट ने यह साबित किया है कि दृढ़ इच्छा और निरंतर प्रयास से कोई भी असंभव लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।